मेरी वेदना इस बात में है कि तुम्हारे धर्म ने तुम्हें जकड़ रखा है और तुम बंधे हुए सिसक रहे हो ।
और वेदना इस बात में है कि तुमने इस बंधन को अपनी नियति मान लिया है, एक लबादे की तरह इसे ओढ़ लिया है जिससे तुम्हारी सांस घुटने लगी है ।
और वेदना इस बात की है, कि मेरे शिष्य विषाद के एक गहरे सागर में डूबते-उतराते हिचकोलें खा रहे हैं ।
क्योंकि धर्म ने तुम्हें पीडाएं दी है वेदना दी है और कफ़न की तरह तुम्हें ढ़क लिया है और तुम्हें मुर्दा बेजान बना दिया है ।
और वेदना इस बात की है कि धर्म ने, समाज ने और तुम्हारे परिवार ने तुम्हारी हंसी छीन ली है, तुम्हारी मुस्कराहट गिरवी रख ली है, तुम्हारी खिल-खिलाहट को सरे आम नीलाम कर दिया है ।
पर मैं तुम्हें नया धर्म दे रहा हूं, जहां बुद्ध का ध्यान है, राम का शील है, कृष्ण का प्रेम है, महावीर की अंहिसा है, इस गुरु धर्म में मुस्कराहट है, खिल-खिलाहट है, हंसी है और आनन्द की हल्की-हल्की फ़ुहार है ।
तुम मेरे पास आओ मैं तुम्हें इस गुरु धर्म से दीक्षित करता हूं ।
कृष्ण मानवता का मूर्तिमन्त्र स्वरूप, प्रेम की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति, जीवन का संगीत, प्राणों का सौरभ और हृदय की छल-छलाहट ।
कृष्ण केवल व्यक्ति ही नहीं थे, सम्पूर्ण पुरुष का प्रतिनिधिात्व करते थे, जीवन को जीने का सही सलीका सिखाया उन्होंने, जीवन को हजार-हजार रंगो से आपूरित किया ।
वे डरे नहीं, हिच-किचाये नहीं, रूके नहीं, झुके नहीं, उनकी दृष्टि लक्ष्य पर रही, उनका चिन्तन स्पष्ट रहा, उन्होंने भोग में योग का सुन्दर समन्वय कर दिया, गृहस्थ में भी वैराग्य की तरह जीने की कला सिखा दी ।
कृष्ण के पास उदासी नहीं है, वैराग्य दुःख या निराशा नहीं है, उनके पास तो गीत है, छन्द है, गुन- गुनाहट है, उत्सव है, आनन्द है, तभी तो उन्हें कृष्ण वन्दे जगद् गुरुं कहा गया है और ऐसा ही गुरु शिष्य को पूर्णता दे सकता है मुस्कराहट और प्रेम की अभिव्यक्ति दे सकता है ।
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