जब तुम हृदय की आंखे खोलोगे तब तुम्हारे जीवन का अर्थ ही बदल जायेगा, जीवन का मूल्य, जीवन का ध्येय और जीवन का लक्ष्य ही पूर्ण हो जायेगा, और तब तुम्हारे अन्दर से जो पैदा होगा, वह सही अर्थों में ‘‘शिष्य’’ होगा, सही अर्थों में ‘‘समर्पण’’ होगा, सही अर्थों में ‘‘पूर्णत्व’’ होगा।
तुम्हारे और मेरे बीच कोई अन्तर नहीं है, क्योंकि तुम मेरे शिष्य हो, तुम्हारे शरीर में मेरा ही रक्त बह रहा है, अन्तर इतना ही है, कि तुम्हारे हृदय में रक्त का बहाव क्षीण हो गया है।
और जब तुम मिलोगे, तो मेरा स्पर्श पा कर तुम्हारा सारा शरीर कम्पित होने लगेगा, तुम्हारे श्वास स्पन्दित होने लगेंगे और तुम्हारे हृदय से मेरे हृदय की धड़कनें एक साथ धड़कने लगेंगी, फि़र तुम अलग नहीं होगे, फि़र तुम्हारा अस्तित्व अलग नहीं होगा, क्योंकि तब तुम पूर्ण रूप से मुझमें डूब सकोगे, पूर्ण रूप से समर्पित हो सकोगे, सही अर्थों में शिष्य बन सकोगे।
क्योंकि जीवन में ऐसे क्षण कभी-कभी ही आते हैं और वे क्षण यदि चूक गये, तो फि़र तुम्हारे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा, अपने आपको समर्पित कर देना और इस समर्पण से तुम्हें सब कुछ मिल जायेगा, जिसे सत्यम् शिवम् सुन्दरम् और ब्रह्मानन्द कहा है।
मैंने जिन्दगी भर मेहनत कर ऊसर रेगिस्तान में सुन्दर गुलाब के पुष्प खिलाये हैं, मैंने घुटन भरे बदबूदार दिल के कमरे में वासन्ती हवा की सर-सराहट भरने का प्रयत्न किया है, मुरझाये हुये उदास चेहरों पर हंसी और खिल-खिलाहट की चांदनी बिखेरी है और अंधोरी घुप्प रात में साधक रूपी चिराग जलाये हैं, जिससे दुनिया को अन्धोरे में ठोकर न लगे।
मैंने अपने आप को तिल-तिल जला कर शिष्यों के मुर्दा प्राणों में संजीवनी रस प्रवाहित किया है क्योंकि मैंने सूरज से रोशनी झटक कर इन चिरागों को दी है, पर अब इन्हें नजर न लगे, इनमें थर-थराहट न आ जाये, इनकी लौ कांपे नहीं, ये बुझ न जाये, इनको सही सलामत जलाये रखना है, यह तुम्हारी जिम्मेवारी है।
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