लेकिन क्या किसी ने सोचा कितनी प्यास, कितनी तड़प रही होगी ईश्वर प्राप्ति की उनके भीतर और बुजदिल तो वे हो ही नहीं सकते। इस संसार में हर कोई राजकुमार सिद्धार्थ गौतम जैसा होना चाहता है, वह चाहता है कि उसके जीवन में राजा-महाराजाओं की तरह ठाठ-बाट हो, सुन्दर पत्नी हो, जीवन सारी सुख-सुविधाओं से युक्त हो और सांसारिक मनुष्य के सारे प्रयास भोग-विलास की प्राप्ति के लिए ही होते हैं और इन्हीं तत्वों के लिए वह बुरे कर्म करने से भी नहीं चूकता। आप सोचें कि उस व्यक्ति का, उस महापुरुष का हृदय कितना विशाल रहा होगा, उनमें कितनी आत्मिक शक्ति रही होगी। कि जब व्यक्ति युवा अवस्था का आनन्द लेने हेतु सांसारिक भोग-विलास में रत रहता है। तब उस व्यक्तित्व ने बोधित्व प्राप्ति के लिए जीवन के सभी भोग-विलास की वस्तुओं को ठोकर मार दी और ठोकर खाने, भटकने का मार्ग चुन लिया।
उनका पहला कदम ही बड़ा साहसिक था, जिस बंधन में सम्पूर्ण संसार चक्कर काट रहा है। जिस बंधन के कारण लोग घृणित कार्य करने से भी नहीं चूकते, उस माया-मोह के मकड़ जाल को एक झटके में उन्होंने तोड़ दिया। तो वे बुजदिल और कायर कहां से हुये? तुमने कहा वे रात को भागे, बिना बताये निकल गये राजमहल छोड़ कर, क्योंकि उन्हें पता था इन्हें बताने का कोई अर्थ नहीं है, जागृति उनमें आयी थी, वेदना उनकी थी, तड़प उनकी थी, तो वे तुम्हें क्या बताते और तुम्हें बता भी देते तो भी तुम समझ नहीं पाते। तुम अपनी ही गुणा-गणित थोप देते और उन पर हर घड़ी नजर रखते कि भाग ना जाये। उन्हें एहसास था कि उनकी पत्नी युवा है, शिशु नवजात है, वे परिचित थे इन बातों से। लेकिन उनकी पीड़ा, उनकी वेदना इन बातों से कहीं बड़ी थी। उनका पहला कदम यही प्रेरणा देता है, कि सबसे पहले माया के बंधन तोड़ों और स्वतंत्र हो जाओं। इसके लिए जरूरी नहीं कि आप अपना घर-परिवार छोड़ दो।
माया में पूर्णता लिप्त ना हो, इतना ही काफी है। दूसरा कि आप त्याग करना सीखो, ज्ञान प्राप्ति, बुधत्व प्राप्ति के लिए त्याग करना होगा। आप राज महल ही त्यागो, आप अपनी सुख-भोग की वस्तुये त्यागों यह आवश्यक नहीं है। आपके पास जो कुछ भी है, उसमें आसक्ति ना हो, इतना ही आपके लिए पर्याप्त होगा।
और आप यह जान लें कि सिद्धार्थ गौतम को अपनी पत्नी से बहुत प्रेम-स्नेह था, उन्हें अपने नवजात शिशु से भी अत्यन्त लगाव था। वे उनसे दुःखी, परेशान होकर नहीं गए थे, ना ही उनके जीवन में किसी प्रकार का शोक या अभाव था। फिर भी उन्होंने यह साहस किया और सब कुछ छोड़ कर निकल गये। उनके भीतर एक हूक उठी, एक आवाज आयी और वे निकल पड़े, उस मार्ग पर जिसका उन्हें कोई ज्ञान नहीं था और उस अंनन्त के मार्ग पर धैर्य पूर्वक चलते रहे, अंत में सर्वोच्च स्थिति प्राप्त की, सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बने।
प्रश्न करने वाले प्रश्न करते रहेंगे, उनका काम ही है प्रश्न करना और हर बात में कोई ना कोई प्रश्न होगा ही। उंगलियां उठती रहेंगी, यह समाज ऐसा ही है। आप साधना करोगे, आप दीक्षा की चेतना ग्रहण करोगे। टोकने वाले आयेंगे, आपको रोका जायेगा। आपकी पत्नी, आपके माता-पिता आपसे कहेंगे, अभी युवा हो, अभी तुम्हारी अवस्था ही क्या है, अभी से माला उठा लिया, मंत्र जप करते हो। आपका पति आपको रोकेगा ये क्या करती है, गुरु जी – गुरु जी। अपने को सर्वश्रेष्ठ बनाना है तो केवल और केवल वर्तमान समय ही है, वृद्धावस्था में तो शारीरिक, मानसिक रूप से न्यून व पराश्रित ही होंगे, अतः जिसके भीतर जज्बा है ईश्वर के प्रति, ज्ञान प्राप्ति के लिए वे अन्ततः अपनी सभी बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हुए बोधत्व की प्राप्ति कर पाते हैं।
आपको छोड़ना कुछ भी नहीं है, घर-परिवार, पति-पत्नी, संतान सभी के साथ रहो, अपने जीवन के सारे कर्तव्य पूरे करो। लेकिन वह मार्ग मत छोड़ना जो तुम्हें वास्तविक रूप से आत्मिक संतोष देता है। सभी के जीवन में कोई ना कोई होता है टोकने वाला। भगवान बुद्ध के भी जीवन में उनकी पत्नी थी, उनकी पूरी प्रजा थी, सभी ने उनको बुरा-भला कहा। आपके जीवन में भी कोई ना कोई होगा, समाज, परिवार, सगे-सम्बन्धी होंगे, जो आपको रोकेंगे, आपको भ्रमित करेंगे।
उस समय आपको अपने भीतर की प्यास की तड़फ महसूस करनी होगी। गुरु के पास हमेशा सांसारिक कारणों से दुःखी होकर मत आना, कभी तुम उनसे ऐसे भी मिलो जब तुम्हारे भीतर आन्तरिक तड़फ उठे, जब तुममें केवल और केवल बुधत्व की ही प्यास हो———!!
राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध तक की यात्रा प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सम्पन्न कर सकता है। इसके लिए घर-परिवार-संसार के त्याग की अनिवार्यता भी नहीं है। केवल जीवन में अनुशीलन व श्रेष्ठ आचरण का पालन कर आप अपने सद्गुणों को विकसित करें, जिससे आपका मन-विचार-शरीर शुद्ध सात्विक चेतना अपने रोम-रोम में आत्मसात करने योग्य बन सके। इन क्रियाओं द्वारा जब बाहर – भीतर शुद्धि का वातावरण निर्मित हो जाता है तब आप एकाग्र शांत चित्त भाव से ईश्वत्व प्राप्ति की ओर अपने कदम धैर्य, संयम, सहनशीलता के साथ विवेक पूर्ण रूप से बढ़ाते रहें। यही वह मार्ग है, जहां आपको परम शांति व आत्मिक संतुष्टि पूर्णता से प्राप्त हो सकेगी।
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