मेरा यह मानना है कि हमें कुछ भी ज्ञान प्राप्त करने के लिये उसे जीवन में अनुभव करने कि आवश्यकता है, तभी हम उस रहस्य की गुणवत्ता व महत्व को अच्छी तरह समझ पायेंगे। कोई भी मंत्र या श्लोक को हजारों, लाखों बार पढ़ने से शायद हमें वो कंठस्थ हो जाये, परन्तु उसका वास्तविक प्रभाव उसे अनुभव करने पर ही ज्ञात होगा और आप साधना को जीवन्त रूप से आत्मसात करने पर ही उस दुर्लभ ज्ञान को अनुभव कर सकेंगे। जिसे हम आत्मज्ञान, मोक्ष, परम आनन्द या Enlightenment प्रत्यक्षीकरण कहते हैं। तभी हम उस क्रिया को ग्रहण करते हैं और हमें उसका ज्ञान स्वतः ही होता है, क्योंकि हमने उस ज्ञान को देवभूमि में, सिद्धाश्रम के योग्य भक्तों के साथ रहकर गुरु सानिध्य में ग्रहण किया है और स्वयं को ज्ञान गंगा में प्रवाहित किया है, इस साधनात्मक शक्ति युक्त वातावरण में हमें ज्यादा कुछ प्रयत्न नहीं करना पड़ता, केवल समर्पित भाव, खुले मन से उसे ग्रहण करना होता है। इस ज्ञान को प्राप्त कर हम स्वयं को समृद्ध एवं पौरुष से युक्त कर पाते हैं, जिसस जीवन में संभावनाओं का विस्तार होता है। अपने जीवन में निरन्तर चल रहे संघर्ष को हम पराजित करने में सक्षम हो जाते हैं। जीवन में व्यर्थ के भटकाव को समझ कर सही कार्य को प्राथमिकता देने का ज्ञान होना हमारे भीतर अनिवार्य है और इसका आभास समय रहते होने से हमें अपनी क्षमता में वृद्धि करने का अवसर इस गंगोत्री-बद्रीनाथ धाम यात्र में प्राप्त हुआ।
जो साधक किसी कारणवश इस महोत्सव में नहीं आ पायें वे गुरु पूर्णिमा उत्सव 14-15-16 जुलाई कोरबा में छठी इन्द्रिय जाग्रत साधना व दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। सही समय कभी नहीं आयेगा समय को सही करना होगा।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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