तुम्हारे चित्त पर वासना की इतनी अधिाक पर्तें जम गई हैं कि तुम वासना और प्रेम का अन्तर ही भुला बैठे हो ।
मैं तुम्हें प्रेम का वसन्त भेंट करने आया हूं, मैं एक बार फि़र तुम्हारे होठों पर गुनगुनाहट बिखेरने के लिये आया हूं, मैं एक बार फि़र तुम्हारे अधरों पर प्रेम का नृत्य सम्पन्न कराने के लिये आया हूं ।
प्रेम के द्वारा कुण्डलिनी जागरण, अनुभूति, साधना एवं इष्ट के साक्षात् जाज्वल्यमान दर्शन सहज सम्भव है ।
तुम्हारे जीवन की श्रेयता जीवित रहने में नहीं है, सांस लेने की क्रिया में नहीं है, श्रेयता तो तुम पर करूणा की वर्षा से ही सम्भव है और वह करूणा गुरु बरसाते है ।
जीवन का पहला और अन्तिम पाप है गुरु को धोखा देना, अपने आप को पतित करना और प्रभु की नजरों में भ्रष्ट कर देना ।
जीवन का सौभाग्य है, कि गुरु प्राप्त हो, उनकी प्रियता मिले और उनके चरणों में समर्पण हो सके, समर्पित हो सकें ।
विश्वास तो तुम्हें अपना होना चाहिये, क्योंकि आत्म विश्वास ही साधना है, विश्वास की डोर से बंधा कर आगे बढ़ना ही सेवा है और आंसुओं के अर्घ्य से समर्पित हो जाना ही इष्ट दर्शन है ।
तू ऊंचा तो उड़, पर पंखों को बोझिल मत होने दे, आकाश में उड़ान तो भर, पर नीचे जमीन की गंदी घिनौनी चीजों पर दृष्टि मत जमा, क्योंकि तुम्हारे चारों ओर परिवार रूपी कूड़ा है, इस पर दृष्टि रखेगा, तो मेरा सारा किया कराया व्यर्थ चला जायेगा ।
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