भगवान शिव की पांच कलायें उपनिषदों में वर्णित है-
1- आनंद 2- विज्ञान 3- मन 4- प्राण 5- वाक
आनंद कला उनका महामृत्युंजय स्वरूप है
विज्ञान कला दक्षिणमूर्ति शिव
मन कला कामेश्वर शिव
प्राण कला पशुपति शिव
वाक कला भूतेशभावन शिव
उपनिषदों की व्याख्या के आधार पर जीवन में आनंद प्राप्ति के निमित्त शिव के मृत्युंजय स्वरूप की आराधना आदि काल से प्रचलित है। महामृत्युंजय शिव षड़भुजा धारी हैं, जिनके चार भुजाओं में अमृत कलश है अर्थात् वे अमृत से स्नान करते हैं, अमृत का ही पान करते हैं एवं अपने भक्तों को भी अमृत पान कराते हुये पूर्णता प्रदान करते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र स्वरूप और भावः
शिव के त्रिनेत्र सूर्य, चन्द्र एवं अग्नि के प्रतीक स्वरूप को त्रयंबक कहा गया है। त्रयंबक शिव के प्रति साधना, पूजा, आराधना, अभिषेक आदि कर्मों से सम्बन्ध जोड़ते हुये स्वयं को समर्पित करने की प्रक्रिया यजामहे है। जीवनदायी तत्वों को अपना सुगंधमय स्वरूप देकर संकट में रक्षा करने वाले शिव सुगंधिम् पद से विभूषित हैं। पोषण एवं लक्ष्मी की अभिवृद्धि करने वाले शिव पुष्टिवर्धनम हैं। रोग एवं अकाल मृत्यु रूपी बन्धनों से मुक्ति प्रदान करने वाले मृत्युंजय उर्वारुकमिव बंधनान हैं। तीन प्रकार की मृत्यु से मुक्ति पाकर अमृतमय शिव से एकाकार की याचना मृत्योर्मुक्षीय मामृतात पद में है।
साधक नित्यकर्म के बाद, आचमन-प्राणायाम करें। माथे पर चंदन का तिलक लगाकर, मंत्र सिद्ध रुद्राक्ष की माला धारण कर लें, महामृत्युंजय यंत्र अथवा चैतन्य शिव चित्र के सम्मुख आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें। शरीर शुद्धि कर संकल्प लें, पश्चात् जप प्रार्थना कर ही मंत्र जप करें-
मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाले ग्रहों से सम्बन्धित दोषों का निवारण महामृत्युंजय मंत्र की आराधना से संभव है। काल सम्बन्धी गणनायें ज्योतिष का आधार हैं तथा शिव स्वयं महाकाल हैं। अतः विपरीत कालखण्ड की गति महामृत्युंजय साधना द्वारा नियंत्रित की जा सकती है। जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष, चन्द्र-राहु युति से जनित दोष, मार्केश एवं बाधकेश ग्रहों की दशाओं में, शनि के अनिष्टकारी गोचर की अवस्था में महामृत्युंजय मंत्र शीघ्र फलदायी है। इसके अलावा विषघटी, विषकन्या, गंडमूल एवं नाड़ी दोष आदि अनेक दोषों के प्रभाव को क्षीण करने की क्षमता इस मंत्र में है।
विभिन्न मंत्र जाप लाभ
लाभः अशक्त अवस्था में इस मंत्र के जाप से रोगों का निवारण होता है और व्यक्ति हष्ट-पुष्ट बनता है।
लाभः इसके जाप से उष्ण जनित रोगों एवं पित्त विकार से मुक्ति मिलती है।
लाभः इस मंत्र जाप से असाध्य रोगों से शीघ्र निवृत्ति होती है।
लाभः यह मंत्र सुख-शांति, पुष्टि एंव अभिवृद्धि वर्धक है।
लाभः जिन कन्याओं का विवाह न हो रहा हो या पति से विवाद होता हो, तो इस मंत्र का जाप करना लाभप्रद है।
लाभः अत्यन्त प्रभावशाली मंत्र मानसिक विकार, तनाव, क्रोध, बेचैनी एवं डिप्रेशन आदि के निवारण हेतु है।
रोगों के निवारण के लिये रूद्राभिषेक का विशेष महत्व आदि काल से ही प्रचलित है, अनेक विशेष प्रावधान भी शिव अभिषेक के लिये शास्त्रों में वर्णित है, जो आपके सम्मुख स्पष्ट कर रहें हैं-
विशिष्ट रूप से शुद्धजल, गंगाजल, पंचामृत या गोदुग्धा से अभिषेक करने का विधान है।
ज्वर, मोतीझरा आदि बीमारियों में मठ्ठे से अभिषेक करना लाभदायक होता है।
शत्रु द्वारा अभिचार अथवा मलिन क्रिया किया गया प्रतीत हो तो सरसों के तेल से अभिषेक करना उत्तम है।
आम, गन्ना, मौसम्मी, संतरे, नारियल इन फ़लों के रसों के मिश्रण से या अलग-अलग रस से भी अभिषेक का विधान है। ऐसे अभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न होकर सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
श्रेष्ठ स्वास्थ्य के लिये कच्चे दूध के साथ गिलोय की आहूति मंत्रोच्चार के साथ दी जाती है। इसके बाद दूब, बरगद के पत्ते अथवा जटा, जपापुष्प, कनेर के पुष्प, बिल्व पत्र, ढ़ाक की समिधा, काली अपराजिता के पुष्प इनके साथ घी मिलाकर दशांश हवन करें।
क्रूर ग्रहों की शांति के लिये मृत्युजंय मंत्र का जप करते हुये घी, दुग्ध और शहद में दूर्वा मिलाकर हवन करना अति उत्तम होता है।
मनोवांछित फ़ल की प्राप्ति के लिए द्रोण और कनेर पुष्पों का हवन करें।
मेषः महामृत्युंजय मंत्र जाप से भूमि-भवन सम्बन्धी परेशानियों एवं कार्य-व्यापार में वृद्धि होता है।
वृषभः उत्साह एवं ऊर्जा की प्राप्ति, भाई-बहन, मित्रों से पूर्ण सुख एंव सहयोग मिलता है।
मिथुनः आर्थिक लाभ व पारिवारिक सुख के साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी बाधाओं एवं पीड़ाओं की निवृत्ति होती है।
कर्कः कर्क राशि वाले इस मंत्र का जाप करते रहें, जीवन का सर्वांगीण विकास होगा।
सिंहः अनावश्यक प्रवृतियों पर अंकुश, पूर्ण निद्रा सुख एवं परिवार में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कन्याः धन, ऐश्वर्य की प्राप्ति, मनोकामनाओं की पूर्ति और सुख-वैभव में वृद्धि होगा।
तुलाः कार्य क्षेत्र में सफलता, पारिवारिक कलेश समाप्त होंगे साथ ही पदोन्नति में विशेष लाभप्रद।
वृश्चिकः भाग्योदय कारक है, आध्यात्मिक उन्नति की संभावनायें प्रबल होंगी।
धनुः पैतृक व आकस्मिक धन लाभ, दुर्घटनाओं एवं आकस्मिक आपदाओं से रक्षा में सहायक।
मकरः सुयोग्य जीवन साथी की प्राप्ति, दाम्पत्य जीवन में मधुरता एवं व्यापारिक उन्नति में लाभप्रद।
कुंभः शत्रु एवं ऋण सम्बन्धी सभी दोष समाप्त होगें, अध्ययन में, कार्यक्षेत्र में सफलतायें प्राप्त होंगी।
मीनः मानसिक स्थिरता, संतान सुख, शिक्षा से सम्बन्धी बाधाओं का निवारण।
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