शास्त्रों के अनुसार जो भी व्यक्ति एक समय भोजन कर भगवान का ध्यान, चिंतन, भजन करता है, वह हर जन्म में यश, कीर्ति के साथ कामदेव की भांति सुन्दर, आकर्षण व्यक्तित्व का धनी होता है। महाभारत के एक प्रसंग में भगवान कृष्ण कहते हैं- खरमास में मंदिर व धार्मिक स्थलों पर पूजन, साधना, ध्यान, भजन, कीर्तन करने से साधक मेरी चेतना से शीघ्र ही अभिभूत होते हैं। साथ ही खरमास के कारण ही भीष्म पितामह महाभारत युद्ध के दौरान एक माह तक शर शैय्या पर लेटे रहते हैं और अपने प्राण नहीं त्यागते, क्योंकि वे अपने व्यक्तित्व को साधना भाव से और अधिक कुन्दनमय बनाने की क्रिया में लीन रहना चाहते हैं। लेकिन जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है भीष्म पितामह अपनी देह का त्याग कर देते हैं। वामन पुराण के अनुसार पौष माह में अन्न, द्रव्य, भोजन आदि का दान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
खरमास में भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ सभी धार्मिक क्रियाओं का विशेष फल प्राप्त होता है। इस माह में अष्टमी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या व पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें तुलसी के पत्तों के साथ खीर का भोग लगाया जाता है। इस माह में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके केसर युक्त दूध से 51 बार भगवान विष्णु के धन लक्ष्मी मंत्रों से भगवान विष्णु का अभिषेक व जाप करें। पीपल वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है, इस वृक्ष की पूजा करना भी शुभ रहता है। भगवान विष्णु सृष्टि पालनकर्ता हैं और उनकी भार्या लक्ष्मी उन्हें पूरा सहयोग प्रदान करती है। अतः साधक को सांध्य बेला के बाद रात्रि कालीन समय में भोर काल से पूर्व नियमित रूप से सहस्त्र विष्णुमय लक्ष्मी साधनायें, मंत्र जाप व भिन्न- भिन्न प्रयोग तुलसी माला से करते रहना चाहिये। जिससे की गृहस्थ जीवन विष्णु लक्ष्मीमय निर्मित हो सके।
ग्रथों के अनुसार भगवान सूर्यदेव 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करते रहते हैं, उन्हें कहीं पर भी रूकने की अनुमति नहीं है, उनके रूकते ही सृष्टि भी ठहर जायेगी, लेकिन जो घोड़े लगातार चलने व विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं, उनकी इस दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया। भगवान सूर्यदेव उन्हें एक तालाब के किनारे ले गये, पर तभी उन्हें आभास हुआ कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जायेगा, लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने व विश्राम करने के लिये छोड़ देते हैं और खर यानी गधों को अपने रथ में जोड़कर अग्रसर हो जाते हैं, रथ की गति धीमी तो हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे एक मास का चक्र पूरा हो जाता है और इस दौरान घोड़ों को भी विश्राम मिल चुका होता है। इस तरह यह क्रम चलता रहता है।
उक्त कथा का तात्पर्य यही है कि इस मास में अनपढ़, मूढ़ व्यक्ति भी साधना, पूजा करे तो निश्चिन्त रूप से अपने जीवन में निखार ला सकते हैं। अतः गृहस्थ जीवन में जो भी अभाव व न्यूनतायें हों उनसे सम्बन्धित साधना, दीक्षा ग्रहण करने से कोटि गुणा प्रभाव प्राप्त होता है। साथ ही इस मास में नूतन वर्ष भी प्रारम्भ हो जाता है, अतः नूतन वर्ष उत्तरोत्तर स्वरूप में सर्वश्रेष्ठ बन सके, उसके लिये साधक विचार कर उसे क्रियान्वित करने का चिंतन करे।
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