शिव पुराण, पद्म पुराण में वर्णित कथानुसार- एक बार शिव-पार्वती के पुत्र गणेश और कार्तिकेय आपस में विवाह के लिये झगड़ रहे थे। इसके समाधान के लिये दोनों अपने माता-पिता के पास पहुंचे। झगड़े को सुलझाने के लिये माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि तुम दोनों में से जो कोई भी इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहां आयेगा उसी का विवाह पहले होगा। ऐसा सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर बैठ कर निकल लिये पृथ्वी की परिक्रमा करने। परन्तु गणेश जी मोटे थे और उनका वाहन मूसक था जिसके कारण वे पृथ्वी की परिक्रमा नहीं कर सकते थे, परन्तु वे बुद्धिमान भी थे। उन्होंने विचार कर अपने माता-पिता से एक स्थान पर बैठने का आग्रह किया। फिर उन्होंने माता-पिता की सात बार परिक्रमा की। इस प्रकार माता-पिता की परिक्रमा से पृथ्वी की परिक्रमा के समान फल प्राप्ति के अधिकारी बन गये। उनकी इस युक्ति से दोनों ही बहुत प्रसन्न हुये। माता-पिता ने प्रजापति की दो कन्याओं रिद्धि और सिद्धि से गणेश का विवाह करा दिया।
कार्तिकेय ज्येष्ठ पुत्र होने के फलस्वरूप आत्मीय स्नेह में मल्लिकार्जुन पर्वत पर पार्वती मां प्रत्येक पूर्णिमा और भगवान शिव प्रत्येक अमावस्या को यहां आते हैं और ऐसी भी मान्यता है कि यही एक मात्र ऐसा स्थान है जहां माता सती की ग्रीवा गिरी थी। इसलिये इसे भ्रामारम्बा शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यह शैल शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से सम्बन्धित कथा जो शिला लेखों पर अंकित है- शैल पर्वत के निकट एक समय चन्द्रगुप्त की राजधानी थी। किसी विपत्ति विशेष के निवारणार्थ उनकी एक कन्या महल से निकल कर शैल पर्वतराज के आश्रम में आकर यहां के गोपो के साथ रहने लगी। उस कन्या के पास एक बड़ी ही सुंदर श्यामा गाय थी। उसका दूध रात में कोई दुह ले जाता था। एक दिन संयोगवश उस राज कन्या ने चोर को दूध दोहते देख लिया ओर क्रुद्ध होकर उस चोर की और दौड़ी, किन्तु गाय के पास पहुंचकर उसने देखा कि वहां शिवलिंग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। शिवलिंग के दर्शन से वह बहुत प्रसन्न हुई व राजकुमारी ने कुछ समय पश्चात् उस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया। यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध है।
मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे मां पार्वती जी का मल्लिका देवी स्वरूप में मंदिर विद्यमान है। वहीं स्थित कृष्णा नदी में भक्तगण स्नान करते हैं और भगवान के दर्शन करते है। मल्लिकार्जुन मंदिर के साथ ही शिखरेश्वर और हाटकेश्वर मंदिर है। वहीं से आगे एकम्मा देवी का मंदिर भी है। ये सारे मंदिर घने वन के बीच में स्थित है। इस स्थान के दर्शन से सभी सात्विक मनोकामनाओं की पूर्ति होती है व भक्तगण माता पार्वती व भगवान शिव की कृपा से सरोबार हो जाते हैं। चर्तुमास व खरमास को छोड़कर अन्य समय में शिव-गौरी स्वरूप में मल्लिकार्जुन साधना, पूजा दीक्षा ग्रहण करने से गृहस्थ जीवन में कार्तिकेय विजयश्री स्वरूप रिद्धि-सिद्धि शुभ लाभमय विघ्नहर्ता की चेतनाओं से पूरा परिवार अभिभूत होता है।
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