पुराणों में पर्वो को सम्पन्न करने के पीछे मन्तव्य यही है कि इन पर्वो के माध्यम से जीवन उत्सवमय बन सके, इसीलिये पर्वो के साथ दैवीय साधना व पूजा-अर्चना को महत्व दिया गया है। साथ ही कुछ विशेष पर्वों को अति शुभ एवं साधना और तंत्र में सर्वोपरि माना है। ये पर्व हैं-
ग्रहण की महत्ता इसलिये सर्वाधिक है, क्योंकि इस समय इस प्रकार का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव पैदा होता है, जो साधना से प्राप्त होने वाले फल को कई गुणा बढ़ा देता है। ग्रहण काल के दौरान किये गये मंत्र जप सामान्य रूप से किये गये लाख जपों के बराबर होते हैं, उस दिन दी गई एक आहुति भी हजार आहुतियों के समान फल देती है।
चन्द्रमा अपनी शीतलता, कोमलता और सौन्दर्य के लिये प्रसिद्ध है, इसीलिये चन्द्रमा व्यक्ति को सौन्दर्य, समस्त भौतिक सुखों और गृहस्थ सुखों को देने वाला है। इन क्रियाओं में वृद्धि के लिये चन्द्र ग्रहण के दिन साधना सम्पन्न करने से श्रेष्ठता आती ही है। क्योंकि समय का अपने आप में विशेष महत्व होता है और वर्ष के प्रथम पौषीय पूर्णिमा पर्व जो कि चन्द्र ग्रहण युक्त है, इसका भलीभांति उपयोग कर वह अपने लिये सफलता के द्वार खोल लेते हैं।
प्रत्येक साधक को चाहिये कि वह ऐसे पर्व का विशिष्ट रूप से उपयोग करते हुये पूजा-पाठ, मंत्र-जप, अनुष्ठान आदि सम्पन्न कर जीवन को श्रेष्ठता की ओर क्रियाशील करें, क्योंकि किसी भी प्रकार की समस्या से मुक्ति पाने के लिये इससे अच्छा अवसर और कोई नहीं है। इसका कारण यह है कि- ग्रहण काल में प्रकृति का रूपांतरण साधनात्मक रूप से श्रेष्ठमय बन जाता है और व्यक्ति प्रकृति अनुसार पूजा-विधान, मंत्र-जप, साधना आदि सम्पन्न करते हैं तो शीघ्र ही साधना का प्रभाव जीवन में चिर-स्थायी बन जाता है।
बड़े-बड़े तांत्रिक व मांत्रिक भी ऐसे ही क्षणों की प्रतीक्षा में टकटकी लगाये बैठे रहते हैं, क्योंकि उन्हें उसके द्विगुणित फल प्राप्ति का ज्ञान पहले से ही होता है और साधारण मानव इस बात से अपरिचित रह जाने के कारण ऐसे विशेष क्षणों को यों ही गंवा बैठते है। चूंकि सामान्य गृहस्थ के जीवन में समस्यायें व कठिनाइयां अधिक होती हैं, जिस कारणवश वह हर क्षण दुःखी व तनावग्रसत रहते है। वे व्यक्ति इस क्षण का लाभ उठाकर अपने जीवन से उन समस्याओं और बाधाओं का निराकरण कर सकते हैं और इस दृष्टि से सामान्य गृहस्थ व्यक्तियों के लिये यह ग्रहण वरदान स्वरूप होता है।
चन्द्रमा मन, भावना, कल्पना शक्ति, ऐश्वर्य, संगीत कला, धन, वैभव, सौन्दर्य, माधुर्य, तीव्र-बुद्धि, यश कीर्ति, दीर्घायु प्राप्ति का ग्रह है। अतः इच्छुक साधक कैलाश सिद्धाश्रम-जोधपुर में सद्गुरुदेव जी के सानिध्य में दिव्य विशिष्ट ग्रहण काल में उचित साधना के साथ यज्ञ सम्पन्न कर इच्छित सफलता प्राप्त कर सकेंगे। अतः कर्मठ क्रियाशील साधना के भावों को पूर्ण आत्मसात करने हेतु ही साधक उक्त दिवस में जोधपुर आश्रम में आयें।
चन्द्रमा स्वास्थ्य का भाव प्रदाता है, यदि किसी के जीवन में चन्द्रमा, राहु व केतु की सम दृष्टि हो तो व्यक्ति निर्बल और पेट दर्द, सिर दर्द तथा अन्य प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होते हैं, अतः अन्य सभी बीमारियां बुखार, हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, आंखों की रोशनी कमजोर होना, पेशाब से सम्बन्धित रोग, गर्भाशय से सम्बन्धित रोग आदि के निराकारण हेतु इसे चन्द्र ग्रहण के समय सम्पन्न किया जाना चाहिये। एक प्रकार से यह साधना समस्त कुरोगों के शमन के लिये श्रेष्ठ है। इससे बाल रक्षा तो होती ही है, वहीं यदि बालक बार-बार अथवा क्रियाहीन रहता है तो उसके निदान हेतु यह साधना वरदान है।
पीले वस्त्र धारण कर, गुरुनामी चादर ओढ़कर, पूर्व दिशा की ओर आसन बिछाकर बैठ जाएं, फिर संक्षिप्त गुरु पूजन सम्पन्न कर, जल लेकर रोग निवारण हेतु संकल्प लें, इसके पश्चात् आरोग्य वर्द्धिनी माला से निम्न मंत्र का ग्रहण काल में 11 माला जप करें-
मंत्र जप सम्पन्न होने के पश्चात् माला को नदी या कुएं में विसर्जित कर दें, इस साधना को रोगी स्वयं या कोई भी अन्य उसके नाम का संकल्प लेकर सम्पन्न कर सकता है। ऐसा करने पर रोग का निराकरण स्वतः ही हो जाता है।
यह सम्मोहन वशीकरण साधना दूसरों के लिये नहीं अपितु स्वयं के लिये सम्पन्न किया जाता है, इस साधना से साधक का शरीर विशेष प्रकार का चुम्बकीय तथा आकर्षण युक्त हो जाता है, चाहे उसका शरीर दुबला, पतला हो, कमजोर हो परन्तु चेहरे पर कुछ ऐसा आकर्षण आ जाता है कि जो भी उसे देखता है, स्वतः ही वश में हो जाता है।
इस साधना को करने के बाद उसके शत्रु भी उसके वश में रहते हैं, अधिकारी अनुकूल होते हैं और यही नहीं अपितु यह साधना सम्पन्न करने के बाद वह जिससे भी मिलता है सामने वाला तुरन्त प्रभावित हो जाता है और उसके कहने के अनुसार कार्य करता है, घर में लड़ाई-झगड़ा समाप्त हो जाता है, पत्नी तथा पुत्र कहना मानने लग जाते हैं और एक प्रकार से देखा जाये तो वह जहां भी जाता है, उसके प्रभाव से लोग उसके व्यक्तित्व और उसके आकर्षण से खिंचे हुये रहते हैं और जीवन भर उसके साथ रहने की इच्छा रखते हैं। वास्तव में ही यह साधना ग्रहण के समय करना श्रेयष्कर है।
इस साधना में सम्मोहन वशीकरण यंत्र तथा सम्मोहन माला का प्रयोग किया जाता है, ये दोनों ही प्रामाणिक और मंत्र सिद्ध होनी चाहिये।
ग्रहण काल के अवसर पर साधक आसन पर पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें ओर सामने थाली में यंत्र स्थापित कर दें। इसके पश्चात् कुंकुम, अक्षत से संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करें, तदुपरान्त यंत्र को श्रद्धा पूर्वक प्रणाम कर जिसे सम्मोहित करना है, उसके नाम का संकल्प लेकर माला से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप करें-
जब मंत्र जप पूरा हो जाये तब उपरोक्त सामग्री रात्रि को ही किसी रास्ते पर रख दें और घर लौट आयें, घर आकर हाथ, पैर धो लें। इस प्रकार करने पर यह साधना सम्पन्न होता है और दूसरे दिन से ही वह अपने व्यक्तित्व में आश्चर्यजनक निखार अनुभव करता है।
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