अणु से विराट बनाने की क्रिया केवल गुरू जानता है, मनुष्य को देवता बनाने की क्रिया केवल गुरू जानता है, मूलाधार से सहस्रार तक पहुंचाने की विद्या केवल गुरू जानता है और जीवन का आधार केवल गुरू ही है।
गुरू बनना कोई मामूली क्रिया नहीं होती। गुरू का अर्थ है – जो शिवत्व प्राप्त व्यक्तित्व हो, जो शिव के समान समाज के जहर को पीता हुआ, शिष्यों के जीवन में अमृत का संचार करे, जो शिष्यों के पापों, विकारों और कमियों को अपने ऊपर ओढ़ता हुआ उनको उच्चता और श्रेष्ठता प्रदान कर सके।
गुरू को सब कुछ समर्पित कर देने का अर्थ यह नहीं कि अपना धन, अपना घर, अपनी संपत्ति गुरू के नाम कर दें। अगर गुरू यह सब चाहता है तो वह गुरू के नाम कर दें। अगर गुरू यह सब चाहता है तो वह गुरू नहीं हो सकता। वह तो एक भिखारी है और जो स्वयं भिखारी है वह भला तुम्हें दे भी क्या सकता है? गुरू को सब कुछ समर्पित करने का अर्थ है अपने दोज, अपना अविश्वास, अपना तर्क उनके चरणों में समर्पित कर देना। सीस उतारे भू धारे तो पयसे घर माहिं।
जो अपना सिर उतार कर यानी अपने तर्क, विचार, छोड़कर गुरू के चरणों में झुक जाता है, वह साधनाओं में और जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है। केवल चरण स्पर्श करने से श्रद्धा ओर विश्वास नहीं होता। वह तो तब होता है जब शिष्य अपने तर्क और अपने संदेह को छोड़कर गुरू के प्रति नमन हो।
केवल हाथ का स्पर्श करने से दीक्षा या शक्तिपात नहीं हो जाता। यह तो केवल एक बाहरी क्रिया है।
शक्तिपात का अर्थ है कि गुरू भीतर से एक चेतना का प्रवाह करें जो उंगलियों या नेत्रों के माधयम से शिष्य के शरीर में प्रवेश कर उसकी आत्म शक्ति को जाग्रत करें।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,