यह तो इस पृथ्वी का असीम सौभाग्य है कि भगवान निखिल ने मानव रूप में जन्म लेकर, इस माटी को अपनी चरणों की धूल से धन्य कर दिया। जिनके दर्शन मात्र के लिये उच्चकोटि के ऋषि, मुनि, योगी, संन्यासी भी तरसते रह जाते हैं, जो इतनी दुर्लभ, कठिन और कठोर तपस्या करने के बाद भी सद्गुरूदेव निखिल का साहचर्य प्राप्त नहीं कर पाते। उनकी सामीप्यता प्राप्त करना तो देवताओं के लिये भी दुर्लभ है।
उनकी यह असीम करूणा का ही भाव है कि जब उनके सिद्धाश्रम जाने का समय निकट आ गया, तब ब्रह्माण्ड में ज्ञान व चैतन्यता का प्रकाश निरन्तर बना रहे इसलिये उन्होंने अपनी समस्त सिद्धियों, तपस्या, ऊर्जा को परम पूज्य सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी में प्रत्यारूपण किया, जो उनके ही भांति उच्च श्रेणी के ज्योतिषी, वेदज्ञ, मंत्र-तंत्र के ज्ञाता तथा कालज्ञानी हैं। सद्गुरूदेव निखिल के इच्छा के अनुरूप ही पूज्य सद्गुरूदेव कैलाश जी उनके स्वप्नों को पूर्ण करने के लिये लुप्त होती भारतीय विद्याओं के वास्तविक एवं प्रामाणिक ज्ञान से लोगों का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं और उनके जीवन को चैतन्यता, सप्राण्ता, रसमयता, आनन्दमयता से आपूरित कर रहे हैं, तथा लुप्त होती भारतीय विद्याओं का वास्तविक परिचय एवं वास्तविक स्वरूप, कैलाश सिद्धाश्रम द्वारा अबाध गति से समाज के सामने प्रस्तुत हो रहा है। भगवान निखिल के ज्ञान को अनवरत रूप से बढ़ाते हुये समाज को उससे अवगत करा रहें हैं और स्थान-स्थान पर दीक्षा, शक्तिपात तथा प्रवचन द्वारा आध्यात्मिक चेतना की ज्ञान-गंगा निरन्तर भगवान निखिल के सानिध्यता में प्रवाहित कर रहे हैं। समस्त विश्व को निखिल ज्ञान-गंगा से ओत-प्रोत कर विश्व में शांति, मधुरता और प्रेम की स्थापना करने के लिये प्रतिबद्ध हैं और भगवान निखिल के स्वप्नों को साकार रूप देने के लिये निरन्तर क्रियाशील हैं, इस संकल्प के साथ ही यह सम्पूर्ण विश्व एक दिन विशालतम कल्पवृक्ष निखिल के छाया तले शीतलता अवश्य अनुभव कर सकेगा।
सद्गुरूदेव कैलाश जी बाह्य रूप से जितने शांत, मधुर, हास्य प्रिय, करूणामय हैं, साथ ही साधनात्मक दृष्टि से उतने ही निष्ठावान, दृढ़ निश्चयी, कर्मशील हैं। साधना, हवन, रूद्राभिषेक अन्य श्रेष्ठतम साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न कराते हुये वे साक्षात् महाकाल स्वरूप में नजर आते हैं, जिनकी एक दृष्टि से अनेक-अनेक जन्मों का पाप समाप्त हो जाता है। असहनीय रोग, भूत-प्रेत, पिशाच दोष, मलिन तंत्र प्रयोग तो इनके सामने टिकते ही नहीं है, ऐसा कहकर मैं अपने भक्ति भाव को प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ भगवान निखिल ने स्वयं अपने एक प्रवचन में कहा है- कि वे तंत्र क्षेत्र में अद्वितीय विद्वान हैं।
यह तो उनकी माया का स्वरूप है, जो सामान्य मनुष्य की तरह सारी क्रिया-कलाप करते हुये सांसारिक माया का आवरण डाले हुये हैं, जिनकी मधुरता, प्रेम, सरलता को देखकर लोग भ्रमित हो जाते हैं। माया के इस जटिलतम स्वरूप को देखकर भ्रमित होना भी स्वाभाविक है। लेकिन सुचारू रूप से कार्य पूर्णता अथवा सृष्टि नव निर्माण के लिये यह आवश्यक भी है। क्योंकि कभी भी, किसी भी महापुरूष ने अपने शक्ति का प्रदर्शन करते हुये समाज का निर्माण नहीं किया और ना ही ऐसा हो सकता है। अवतारी पुरूषों ने समाज के मध्य, कांटों के मध्य, बुराईयों से जूझते हुये, हजारों जख्म सहते हुये समाज को नयी दिशा दी है। चाहे सारा संसार बैरी हो गया हो, चाहे समाज उन्हें कितना भी प्रताडि़त करे, वे कभी भी अपने कर्तव्य, धर्म से पीछे नहीं हटे, चाहे भगवान कृष्ण, राम, बुद्ध, महावीर कोई भी रहा हो, सबने समाज को श्रेष्ठ दिशा देने के लिये अनेक पीड़ा सहन की।
आप सभी जानते हैं कि गुरू कोई शरीर अथवा हाड़ मांस का पुतला नहीं होता, देहधारी गुरू के भीतर जो गुरूत्व होता है, वह मूल रूप से गुरू है, गुरू अपने दिव्य ज्ञान से शिष्यता के स्तर पर आते हैं, जिससे समाज का कल्याण हो सके, गुरूत्व शक्ति ही स्वयं को प्रदिर्शत करने के लिये मानव शरीर को अपना आवरण बनाती है, उस देह में तो मूल रूप से गुरूत्व शक्ति ही समाहित होता है, जो अनन्त काल से चली आ रही है, प्रत्येक युग में उनका रूप अलग-अलग होता है। उसी गुरूत्व शक्ति को पहचानने वाले ही वास्तविक गुरू कृपा प्राप्त कर पाते हैं।
सद्गुरूदेव कैलाश जी भगवान निखिल के जिन संकल्पों को पूर्ण करने के लिये जिस तरह क्रियाशील हैं, यह तो कोई युगपुरूष ही कर सकता है। वे पिछले 38 वर्षों से निखिल कारवां को लेकर गतिशील हैं, इस अवधि में अनेक लोग इस कारवां में शामिल हुये और बीच रास्ते में ही अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिये किनारा कर लिया, फिर भी वे अपने अडिगता और संकल्प से विचलित नहीं हुये। वे इस कारवां को लेकर उसी तरह गतिशील हुये जैसा भगवान निखिल ने उन्हें सौपा था।
आज आवश्यकता है कुछ ऐसे ही कर्मयोगियों की जो विश्व, समाज को नई दिशा दे सके, जो अपने जीवन में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में निखिल ज्ञान-गंगा को निरन्तर रूप से प्रवाहित कर सकें। अपने जीवन में सम्पूर्णता का रसास्वादन कर सके।
परम पूज्य सद्गुरूदेव के जन्मोत्सव 18 जनवरी के संकल्प दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार ने निश्चय किया है, कि इस दिव्य चैतन्य गुरू पर्व को कैलाश नारायण संकल्प दिवस के रूप में मनायेंगे। जहां सद्गुरूदेव जी के साथ वन्दनीय माता जी के वरदहस्त से सभी शिष्य आीांदित हो सकेंगे। यह आनन्दोत्सव का पर्व सही मायने में शिष्य पर्व है, जब शिष्य अपने शिव स्वरूप सद्गुरूदेव के पूजन से अपने भावों को, अपने प्रेम को, अपनी इच्छाओं को व्यक्त कर जीवन की समस्याओं से निश्चिन्त हो जाता है, उनके ही रंग में रंगने की क्रिया पूर्ण कर लेता है। ऐसी ही स्वर्णिम बेला पर अपने भावों के अनुरूप महामृत्युंजय मंत्रें से रूद्राभिषेक, गुरू मंत्र, चेतना मंत्र जप, हवन, नृत्य, भजन की आनन्दमय क्रियायें सम्पन्न करें।
इस कैलाश नारायण संकल्प दिवस पर हम सभी शिष्यों को यही संकल्प लेना है कि पूज्य सद्गुरूदेव के कार्यों को विस्तार करने के लिये नित्य समय निकाल कर उनके ही चेतना से आपूरित इस भव्य अंतर्राष्ट्रीय कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार का एक स्तम्भ बन सकें।
सद्गुरू सिद्धाश्रम ज्ञान ज्योति को जन-जन तक पहुँचाना ही सर्वश्रेष्ठ साधना, सेवा है। साथ ही प्राचीन मंत्र-यंत्र विज्ञान पत्रिका का एक नया सदस्य जोड़े, यही हम सब की ओर से सद्गुरूदेव निखिल जी को समर्पण होगा——–।
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