अप्रत्यक्ष रूप में होने वाले उन सभी कर्मों का फल आप आज भी भोग रहे है। यह सुख, कष्ट, सम्पत्ति, तिरसकार, मान-सम्मान, सभी आपका अर्जित किया हुआ नहीं है। सुफल या कुफल तो उनके कर्म का है, जो चाहे न चाहे आपसे जुड़ा हुआ है। पित्ररों के जाने से आपका उनके साथ सम्बन्ध समाप्त नहीं हो गया, वो तब तक रहेगा जब तक वे तृप्त नहीं हुये हो या मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई हो, ये तभी सम्भव है जब आपके द्वारा दान, पुण्य, भजन, तर्पण, पिण्ड दान की क्रिया की जाती है। वे पितृ है, वे मृत है, वे कर्म नहीं कर सकते, परन्तु क्योंकि आपका उनके साथ सम्बन्ध रहा है तो आपका कर्म करना स्वयं व अपने बच्चों के लिये अनिवार्य है, क्योंकि गुरू यह नहीं चाहते कि उनके आत्मन्य साधक को किसी भी रूप में ज्ञान होने के उपरान्त भी पितृदोष या शापित दोष भोगना पड़े।
यह सब कर्म करने से केवल आपके पित्ररों का नहीं अपितु आपका व आपके वंश, सभी का उद्धार होगा। ये पितृ पक्ष के 16 दिन आप अपने पूर्वजों की पूजा व उनके मोक्ष प्राप्ति, सुख प्राप्ति के लिये श्राद्ध-तर्पण-पिण्ड दान की क्रिया यथा सम्पन्न करे। इस क्रिया से संकोचित या भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है, आप यह शंका कदाचित नहीं करे कि ये क्रिया कोई पंडित-पुरोहित या पुजारी के माध्यम से कराना होगा।
गुरूदेव द्वारा दीक्षित प्रत्येक साधक में यह सामर्थ्य है कि वे स्वयं के लिये यह क्रिया सम्पन्न कर सकते है।
इस पितृ पक्ष में आप पितृ शान्ति की क्रिया अपने घर, गुरू आश्रम, निकटतम शिविर या कोई तीर्थ स्थान में अवश्य सम्पन्न करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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