कुम्भ की उत्पति के सम्बन्ध में पुराणों में अनेक आख्यान मिलते है। इनमें स्कन्द पुराण में समुद्र मन्थन की कथा सर्वाधिक प्रचलित है। इस कथा के अनुसार ‘हिमालय’ के समीप ‘क्षीरोद’ नाम का एक सागर है। एक समय देवताओं और दानवों के बीच अमृत कुम्भ की प्राप्ति के लिये सागर के मूल में कूर्म (कच्छप) और उसके ऊपर मन्दरांचल पर्वत को स्थापित करके उस पर ‘वासुकि’ नाग की रस्सी बनाकर मन्थन किया गया। समुद्र-मन्थन द्वारा क्षीरसागर से चौदह (14) रत्न निकले। कालकूट विष, पुष्पक विमान, ऐरावत हाथी, पारिजात वृक्ष, अप्सरा रम्भा, कौस्तुभ मणि, बाल चन्द्रमा, कुण्डल धनुष, शार्ग धनुष, कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा घोड़ा, समस्त ऐश्वर्यों की अधिष्ठात्री लक्ष्मी,विश्वकर्मा, अन्त में महाविष्णु धनवन्तरी के हाथों में शोभायामान अमृत से आपूरित कुम्भ (कलश) उत्पन्न हुआ। देवताओं के संकेत पर इन्द्र का पुत्र जयन्त अमृत कुम्भ लेकर बड़े वेग से भागने लगा। दैत्यगण जयन्त का पीछा करने लगे। अमृत प्राप्ति के लिये देवताओं और राक्षसों के मध्य बारह दिव्य दिन (मानुषी बारह वर्ष) तक भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध के समय जिन-जिन स्थानों पर ‘कुम्भ’ से अमृत की बूंदे गिरी थी, उन-उन स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कुम्भ-महापर्व मनाया जाता है। तत्पश्चात् भगवान श्रीविष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके अमृत को देवताओं में बांटा।
पुराणानुसार ‘ अमृत-कुंभ’ की रक्षा में बृहस्पति, सूर्य व चन्द्रमा ने विशेष सहायता की थी। ‘चन्द्रमा’ ने अमृत को कुम्भ में से गिरने से, ‘सूर्य’ ने कुम्भ को फूटने से और ‘बृहस्पति’ ने असुरों से अपहरण होने से तथा ‘ शनि’ ने देवराज इन्द्र के भय से अमृत-कुम्भ की रक्षा की थी। इसी कारण सूर्य , चन्द्र और बृहस्पति- तीनों ग्रहों के विशेष योग में ही कुम्भ महापर्व मनाया जाता है।
कुम्भ -महापर्व 12वें वर्ष क्यों?
जिस समय में चन्द्रादि ग्रहों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले सूर्य-चन्द्रादि ग्रह जब वहीं आते है, उस समय कुम्भ का योग होता है। अर्थात् जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में जहाँ-जहाँ अमृत कुम्भ सुधा-बिन्दु गिरा था, वहाँ-वहाँ कुम्भ पर्व होता है।
क्योंकि सन् 2025 में माघी अमावस के दिन सूर्य-चन्द्रमा मकर राशि में तथा बृहस्पति वर्ष राशि में होंगे, तद्नुसार कुम्भ-महापर्व का मुख्य स्नान 29 जनवरी, 2025 ई. को ही होगा।
प्रयाग-कुम्भ पर्व में स्नान का माहात्म्य
त्रिवेणी अर्थात् गंगा, यमुना व सरस्वती- तीनों पावन नदियों के संगम पर माघ मास एवं कुम्भ पर्व पर स्नान, जप-पाठ एवं दानादि का धर्मशास्त्रों में विशेष माहात्म्य वर्णित किया गया है। विधिपूर्वक माघ स्नान से बढ़कर कोई पवित्र और पापनाशक पर्व नहीं।
माघ मास में कुम्भ पर्व पर प्रयागराज में व्यक्ति तीन दिन भी नियमपूर्वक स्नान कर लेता है, तो उसे एक सहस्त्र अश्वमेघ यज्ञों को करने के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है-
प्रयागे माघमासे, कुम्भपर्वं तु, त्र्यह-स्नानस्य यत् फलम्।।
अश्व-मेघ-सहस्त्रेण, फलं लभते भुवि।।
तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना एवं सरस्वती (त्रिवेणी) के संगम में स्नान करके प्राणी अनेक पापों से मुक्त होकर स्वर्गिक सुखों का अधिकारी हो जाता है।
प्रयाग के माहात्म्य से सारा वैदिक साहित्य भरा पड़ा है। पद्मपुराण में उललेखित है –
ग्रहों में सूर्य तथा ताराओं में चन्द्रमा है, वैसे ही तीर्थो में प्रयागराज सर्वोत्तम है।’
कुम्भ-पर्व का मुख्य योग माघी अमावस्या, 29 जनवरी, 2025ई. को है, परन्तु पौषीय पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा (चन्द्र माघ मास) अथवा मकर-संक्रान्ति से कुम्भ-संक्रान्ति (सौर माघ मास) प्रतिदिन प्रातः किसी भी नदी, तालाब, तीर्थ पर नियमपूर्वक स्नान करना चाहिये।
(1) पौष शुक्ल एकादशी शुक्रवार 10 जनवरी, 2025 इस पुत्रदा एकादशी वाले दिन कुम्भ-महापर्व के स्नान, दान का विशेष पुण्य होगा। एक परम्परा के अनुसार माघस्नान का प्रारम्भ इसी तिथि से किया जाता है।
(2) पौष पूर्णिमा, सोमवार ( 13 जनवरी, 2025) पौषी पूर्णिमा के दिन तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी-संगम में स्नान से विशेष पुण्यलाभ होगा। वैसे भी पौष-पूर्णिमा में स्नान-दान की विशेष महिमा मानी गई है। चान्द्रगणनानुसार पौष-पूर्णिमा से ही अति पावन ‘माघस्नान’ का श्रीगणेश होता है। प्रायः सभी पंचागों में पौष-पूर्णिमा के दिन ही माघस्नान का संकल्प लिखा रहता है।
तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी संगम के पवित्र वातावरण में निवास करते हुये ‘पौष-पूर्णिमा’ के महापर्व-काल में स्नान करना निःसन्देह अमोघ फलदायक है। यह कुम्भ-मेले का प्रथम ‘स्नानपर्व’ होगा।
(3) मकर संक्रान्ति (माघ कृष्ण प्रतिपदा) मंगलवार (14 जनवरी 2025 ई.) (प्रथम शाही-स्नान) 14 जनवरी, 2025 को सारा दिन प्रातः से सूर्यास्त तक मकर संक्रान्ति का पुण्यकाल होगा। इस दिन सूर्य मकरराशि में प्रातः 08 घंटा-55 मिनट पर प्रवेश करेंगे। यह निरयण उतरायण दिन है। अतएव यह दिन संक्रमण काल होने से स्नान-दान के लिये पुण्यदायक होता है।
(4) माघकृष्ण एकादशी, शनिवार (25 जनवरी, 2025 ) षट्तिला एकादशी वाले दिन तीर्थराज प्रयागराज में कुंभ-स्नान, तिलदान, तिल का भोजन, तिलयुक्त जल से ऋषियों-देवताओं का तर्पण करने का विशेष विधान रहेगा तथा अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
(5) माघ कृष्ण त्रयोदशी, सोमवार (27 जनवरी, 2025) सोम-प्रदोष व्रत, शिव -जलाभिषेक तथा तिलयुक्त वस्तुओं के दान के साथ-साथ स्नान का विशेष माहात्म्य होगा।
(6) कुम्भ महापर्व की प्रमुख स्नानतिथि-माघ (मौनी) अमावस, बुधवार, (29 जनवरी, 2025 )-
माघ (मौनी) अमावस के दिन गुरू वृष में तथा सूर्य-चन्द्र मकर राशि में होंगे। इसलिये इस दिन प्रयागराज में कुम्भ महापर्व का योग बन रहा है। यह इस कुम्भ महापर्व की प्रमुख (शाही) स्नान तिथि है, इस दुर्लभ महापर्व में त्रिवेणी-संगम में स्नान करने से अक्षय पुण्य लाभ होगा। इसीदिन षड्दर्शन के शंकराचार्यदि सन्त महात्मा (संन्यासी, उदासीन, निर्मल, वैष्णव, अग्नि व खालसे अखाड़े) अपने शिष्यों सहित प्रमुख शाही यात्रा निकालकर त्रिवेणी-संगम में स्नान करेंगे।
सहस्त्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानषतानि च।
वैषाखे नर्मदा कोटिः कुम्भस्नाने तत्फलम्।। (स्कन्दपुराण)
माघी अमावस के दिन श्रवण- नक्षत्र भी विद्यमान रहने से कुम्भ पर्व का माहात्म्य अनन्त गुणा अधिक रहेगा।
(7) वसन्त-पंचमी (माघशुक्ल पंचमी), रवि/सोम (2/3 फरवरी, 2025) तृतीय (अन्तिम) शाही-स्नान को प्रातः 9 घंटा-15 मिनट बाद पंचमी तिथि पूर्वाह्न कालिक रहने से वसन्त पंचमी के दिन स्नान-दान का अनूठा महत्त्व रहेगा। इस दिन तीसरा (अन्तिम) शाही स्नान होगा।
(8) माघ शुक्ल सप्तमी, मंगलवार (4 फरवरी, 2025) (आरोग्य-रथ सप्तमी)- इस दिन त्रिवेणी संगम में स्वस्थ शरीर की कामना हेतु स्नान, दानादि, कर भगवान सूर्य का पूजन अर्घ्य-दान करें। पूर्वारूणोदय वाली आरोग्य सप्तमी प्राणीमात्र की जीवनशक्ति को जीवित रखने वाले प्रत्यक्ष ईश्वर सूर्य-नारायण ने मन्वन्तर के आदि में इसी दिन अपना प्रकाश प्रकाशित किया था। इस दिन सूर्योदय से पहले (1 घंटा- 36 मिनट पूर्व) अरूणोदयकाल में स्नान-दान से करोड़ो सूर्यग्रहण के समय किये गये स्नानदि तुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है।
कुम्भ-महापर्व की द्वितीय स्नान-पर्व तिथि है ।
(9) माघ शुक्ल अष्टमी, बुधवार ( 5 फरवरी, 2025) को भीष्माष्टमी होगी। अतः इस दिन स्नान-दानादि पश्चात् भीष्म-पितामह निमित्त एवं पितरों निमित्त तिलयुक्त तर्पण करना चाहिये। ‘ वसूनामवताराय शंतनोरात्मजाय च। अर्घ्यं ददामि भीष्माय आवाल्य-ब्रह्माचारिणे।’ इस मंत्र से अर्घ्य दें।
(10) माघ शुक्ल एकादशी, शनिवार (8 फरवरी, 2025) जया-एकादशी का पुण्य व्रत धारण कर त्रिवेणी में स्नान-दान करने का पुण्यतम् अवसर होगा।
(11) माघशुक्ल त्रयोदशी, सोमवार (10 फरवरी, 2025)-सोम प्रदोष व्रत वाले दिन पावन त्रिवेणी में स्नानदि के पश्चात् शिवार्चन तथा शिव-अभिषेक करने से अक्षय पुण्यों की प्राप्ति का सुअवसर गंवाना नहीं चाहिये।
(12) माघ पूर्णिमा, बुधवार (12 फरवरी, 2025)-माघ पूर्णिमा कुम्भ-महापर्व (प्रयाग) की मुख्य तृतीय स्नानपर्व तिथि माना जायेगा। माघ पूर्णिमा के दिन तीर्थस्नान पर स्नान-दान का शास्त्रों में अनन्त माहात्म्य वर्णित है। चान्द्रगणानुसार माघी पूर्णिमा को माघस्नान की अन्तिम तिथि मानी जाती है।
यह सारा बाह्य स्वरूप ‘पूर्ण’ है, इसका अन्तः स्वरूप भी ‘पूर्ण’ है, ‘पूर्ण’ से ‘पूर्ण’ का विकास है। यहाँ तक कि ‘पूर्ण’ से ‘पूर्ण’ को निकाल लेने पर भी ‘पूर्ण’ ही शेष रहता है।
अतः श्रद्धालु जनों को इस पुण्यतम् अवसर का लाभ उठाना चाहिये। इसीदिन फाल्गुन संक्रान्ति भी होने से इस तिथि में पुण्यार्जन का अवसर खोना नहीं चाहिये।
समुद्र मंथन पर भगवान शिव ने विष धारण किया और देवताओं को अमृत प्रदान किया इसीलिये भगवान शिव देवों के देव महादेव है विश्व में आयोजित सर्व श्रेष्ठ महाकुंभ की पूर्णता शिव- गौरी के परिणय पर्व से पूर्ण हो रही है। ऐसे सुयोगों से युक्त भगवान महादेव की नगरी विश्वनाथ धाम में 25-26 फरवरी बुधवार, गुरूवार को नियोजित महाशिवरात्रि पर्व वाराणसी में सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी व वन्दनीय शोभा माताजी के सानिध्य में सपरिवार आकर शिव परिवार की सर्व चेतनाओं को आत्मसात् करने से कोटि कोटि महाकुंभ स्वरूप तेजमय चेतना प्राप्ति से साधकों के परिवार का गृहस्थ जीवन शिव परिवारमय हो सकेगा।
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