सूर्य ग्रहण के समय सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में तेजस्वी ऊर्जा प्रवाहित होती है। हमारे सौरमण्डल में पृथ्वी के अस्तित्व को कायम रखने के लिये सूर्य का सर्वोपरि स्थान है। यदि सूर्य न हो, तो इस पृथ्वी पर प्रकृति का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश से ही सम्पूर्ण धरा आलोकित हे, जिसके प्रकाश में व्यक्ति के जीवन से अंधकार को समाप्त कर उसे नवीन चेतना, जागृति से भर देने की क्षमता है। सूर्य तेज के फलस्वरूप ही मनुष्य जीवन में चलायमान रहता है।
प्रत्येक सांसारिक मनुष्य अपने जीवन को श्रेष्ठतम रूप से क्रियाशील रखने हेतु मूलभूत कुछ इच्छायें रखता है जैसे कि आकर्षक दिखना, सम्मोहन युक्त, तेजस्वी व्यक्तित्व, वाक्चातुर्य, कुशाग्र बुद्धि, शत्रु पर विजय, स्वास्थ्य उल्लासित जीवन, कार्य में प्रतिष्ठा, सम्मान, ख्याति, पारिवारिक सुख, ऐश्वर्य युक्त जीवन, अटूट धन, समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति, ऐसे ही सुस्थितियां सब सूर्य में ही निहित है।
इस वर्ष के प्रथम सूर्यग्रहण काल में प्राप्त दीक्षा व की गयी साधना ओर ग्रहण काल में प्रारम्भ किया गया कार्य कभी असफल नहीं होता यह एक गूढ़ सत्य है । सांसारिक जीवन में नित्य मनुष्य को धन का अभाव, शत्रु बाधा, रोग ग्रसित रहना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अपने जीवन की मलिन स्थितियों का निवारण करने हेतु इस ग्रहण काल में गुरूदेव जी के निर्देश में दीक्षा, साधना, मंत्र जप सम्पन्न कर श्रेष्ठता की ओर अग्रसर हो सकेंगे। जिससे वर्ष 2082 हर स्वरूप में सूर्य तेजस्वितामय स्वरूप में क्रियाशील रहेगा।
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