अपराजेय होने का तात्पर्य है कि आपके दोष दूर हो जाये, आप अपने आपको पहचान सकें, अपने संकल्प के अनुसार कार्य कर सकें, दूसरे यदि आपको हानि भी पहुँचाने का प्रयास करें, तो आपको हानि न पहुँचे, जो भी शत्रु आप पर किसी भी प्रकार का तांत्रिक प्रयोग करें वह उल्टा पड़ जाय, आपको प्रभावित करने की बजाय उल्टा उसे ही हानि दे दें, तभी तो विशेषता है, जीवन का आनन्द है।
मनुष्य को यह जीवन इसलिये प्राप्त हुआ है, कि वह इस जीवन में पूर्णता प्राप्त करें, अपने जीवन में इन्द्रधनुष के समान सभी रंगों को देखे, उन्हें अनुभव करे और इन अनुभवों को ग्रहण करने के पश्चात् जीवन में प्रगति के उस स्तर पर पहुँच जाये कि उसे पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त हो सके, जीवन इसलिये नहीं मिला है, कि आप एक लीक पर चलते जाये, अपितु कुछ ऐसा करते रहें जिससे कि आगे बढ़ने का मार्ग निरन्तर खुलता रहे।
इस स्थिति को प्राप्त करने के लिये विजय दीक्षा रामबाण सिद्ध होती है, जो शीघ्र ही उस व्यक्ति को लाभ की ओर प्रेरित करती है, और पुनः उसे सम्मानजनक जीवन प्रदान करके सौभाग्यशाली व्यक्तित्व का धनी बना देती है। विजय दीक्षा सद्गुरू द्वारा तीव्र शक्तिपात से ही प्राप्त हो सकती है। जीवन में पराजय रूपी बाधायें हटाना साधारण व्यक्ति के सामर्थ्य की बात नहीं है। उसे चाहिये एक मजबूत व्यक्तित्व का सहारा जो एक विस्फोट के साथ उसकी सारी शक्तियों को जाग्रत कर दें, यही तो ‘विजय दीक्षा’ है।
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