आखिर क्या होता है, इन संन्यासियों के पास… जिसके बल पर वे एकदम निडर होते हैं, बेबाक होते हैं, उन्हें किसी प्रकार के खतरे से, किसी भी जंगली पशु आदि से लेश मात्र भी भय नहीं होता?
कुछ न कुछ तो होता है अवश्य उनके पास, जिन्हें भले ही सामान्य व्यक्ति न जानता हो, परन्तु जो संन्यास और गृहस्थ दोनों में ही समान रूप से दखल रखते हैं…
ये सिद्ध जल कड़ा स्वतः ही सिद्ध व चैतन्य है, इन पर कोई प्रयोग अथवा मंत्र जप करने की आवश्यकता नहीं है। इन्हें तो मात्र धारण कर लेना ही पर्याप्त है… और धारण करने के लिये कोई आवश्यक नहीं कि किसी विशेष तिथि को ही धारण किया जाये।
इसके माध्यम से गृहस्थ पर किसी प्रकार का मारण, मोहन या वशीकरण नहीं हो पाता। एक प्रकार से वह निर्भय और निश्चिन्त होता है। यदि गृहस्थ भी इस कड़े को धारण करता है, तो उस पर किसी प्रकार की तांत्रिक क्रिया सम्पन्न नहीं हो पाती। भूत-प्रेत पिशाच आदि उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। वह जहाँ कहीं भी रहता है, शत्रुओं से पूर्णतः सुरक्षित रहता है। शत्रु अपने आप परास्त होते रहते हैं और किसी भी प्रकार से शत्रु ऐसे व्यक्ति पर न हावी हो सकते हैं और न उसके शरीर को नुकसान पहुँचा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को किसी प्रकार की बाधा या अड़चन आ ही नहीं सकती।
हकीकत में देखा जाय तो इसको ‘योगी कड़ा’ या ‘संन्यासी कड़ा’ कहा जाता है। गोरखनाथ ने इसे जल कड़ा या जलमुद्रा कहा है।
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