भगवान वेदव्यास अद्भूत अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न है। इन्होंने महाभारत के साथ चारो वेद, 18 पुराणों, श्रीमद्भगवत गीता की रचना की। ये उस काल में हुई लगभग सभी घटनाओं के साक्षी रहे हैं। इन्होंने अपने साहित्य और लेखन के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता को यथार्थ और ज्ञान का कोष दिया। भगवान गणेश ने वेदव्यास जी के मुख से निकली वाणी को लिपिबद्ध करने का कार्य किया। आम जनों को समझने में आसानी हो, इसलिये महर्षि वेदव्यास ने अपने वैदिक ज्ञान, वेद उपनिषद पुराण ग्रंथादि को चार हिस्सों में विभाजित किया। वेदों को सरल बनाने के लिये समय-समय पर इसमें संसोधन किये।
महर्षि वेदव्यास ने 28 बार वेदों में संशोधन किया ताकि, आमजन व आने वाली पीढ़ियों के लिये इन्हें समझना सरल, सुगम रहे।
कलियुग के आंरभ से ठीक पहले महर्षि वेदव्यास तप ओर ध्यान करने हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में प्रस्थान कर गये थे। जो कल्कि अवतार के समय सभी अष्ट चिरंजीवियों के साथ पुनः विश्व के सामने आयेंगे।
पिछले दो वर्षो में मैंने भगवान विष्णु के 24 अवतार व उनके अंशावतारों के बारे में आप सभी को संक्षिप्त में बताया कि कैसे धर्म की रक्षा, शांति की स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार लिये असुरों का अंत किया। वर्तमान में, भविष्य में भी जब कभी अधर्म का पलड़ा भारी होगा, या जीवों की, मानव जाति की सुरक्षा दांव पर होगी, धर्म की हानि होगी तब पुनः भगवान विष्णु किसी महापुरूष के रूप में अवतरित होकर पृथ्वी को संतुलित कर विश्व में पुनः शांति स्थापित करेंगे।
भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार जैसे वराह अवतार, नृसिंह अवतार, मत्स्यावतार, श्री कृष्ण, श्री बलराम अवतार, नर नारायण अवतार, सनकादि ऋषि, नारद अवतार, व्यास मुनि आदि सभी को यदि उनके विशेष दिवस यानि कि उनके अवतरण पर्व, विशेष मास में इनका साधना-पूजन किया जाये, तो साधक इनकी विशेष कृपा प्राप्त कर जीवन के दुःख, बाधा, कठिनाईयों से निजात पाकर इनकी अनन्य कृपा प्राप्त कर भक्ति भाव से ओत प्रोत हो सकते हैं।
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