वटवृक्ष धार्मिक व वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण से जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण है। बरगद का वृक्ष एक दीर्घजीवी विशाल वृक्ष है। हिंदू परंपरा में इसे पूज्य माना जाता है। अलग-अलग देवों से विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उस समय यक्षों के राजा मणिभद्र से वटवृक्ष उत्पन्न हुआ। ऐसा मानते हैं कि इसके पूजन से और इसकी जड़ में जल देने से पुण्य प्राप्ति होती है। यह वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक है। इसकी छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास माना जाता है। यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है। इसलिये संतान के इच्छुक लोग इसकी विशेष पूजा करते हैं। यह बहुत लंबे समय तक जीवित रहता है। इसलिये इसे अक्षयवट भी कहा जाता है और साथ ही इसकी पूजा शतायु जीवन प्राप्ति के लिये भी की जाती है।
बरगद पेड़ के नीचे ही वट सावित्री व्रत की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे बैठकर सावित्री ने तपस्या की थी और यमराज ने प्रसन्न होकर उसके पति के प्राण वापस लौटा दिए थे। सुहाग की दीर्घायु के लिये इस पेड़ की पूजा वट सावित्री के दिन की जाती है। इसके अलावा कई धार्मिक अनुष्ठान और शुभ-मांगलिक कार्यों में भी बरगद के पेड़ का महत्त्व होता है।
स्कंद पुराण में देवी सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु हो जाने पर सावित्री द्वारा पति के प्राण वापस लाने की कथा का जिक्र वट सावित्री व्रत कथा में किया गया है। इस कथा के विषय में कहा गया है कि यह कथा सौभाग्य प्रदान करने वाला है। इसलिये वट सावित्री व्रत के दिन साधना, मंत्र-जप, दीक्षा सम्पन्न करने से कुटुम्ब रक्षा व अकाल मृत्यु का निवारण होता है और वैवाहिक जीवन में प्रेम और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में एक महत्त्वपूर्ण पर्व है जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिये व्रत के रूप में मनाई जाती है। इस व्रत की कथा के मुख्य पात्र सावित्री और सत्यवान हैं।
वर्तमान समय में प्रायः सभी परिवारों में अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है, जिससे परिवार का प्रत्येक व्यक्ति छुटकारा चाहता है और गृहस्थ सुख का आनन्द प्राप्त करना चाहता है, परन्तु इन समस्याओं के कारणों से वह इसका सुख प्राप्त नहीं कर पाता-
यह प्रयोग सम्पन्न करने पर घर के सदस्यों के बीच आपसी तारतम्यता बनने लगती है तथा उनकी मानसिकता में परिवर्तन आने लगता है उनके मध्य प्रेम और सौहार्द का वातावरण उपस्थित होने लगता है जिससे पूरा परिवार फिर से संगठित हो जाता है।
यह प्रयोग अत्यन्त उच्चकोटि का प्रयोग है, इस साधना को निम्न कामनाओं को लेकर कर सकते हैं-
साधक इनमें से किसी एक कामना को लेकर भी साधना कर सकते हैं या इन सबके लिये साधना सम्पन्न कर सकते हैं। लेकिन साधक साधना सम्पन्न करें, तो पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और मानसिक एकाग्रता से करें, क्योंकि श्रद्धाहीन होकर प्रयोग सम्पन्न करना निष्फल होना है।
साधना विधि
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