जीवन का प्रत्येक क्षण अपनी एक विशिष्टता लिए हुए होता है। जब तक हम क्षण की महत्ता समझ नहीं लेते, तब तक हम उसकी गंभीरता का अनुभव नहीं कर पाते। वाल्मीकि रामायण में लिखा है- एक बार विश्वामित्र भगवान राम व लक्ष्मण को धनुर्विद्या का ज्ञान दे रहे थे, तभी उन्होंने अचानक दोनों राजपुत्रों को सर्वप्रथम काल ज्ञान की विद्या सिखानी प्रारम्भ कर दी और बताया जीवन में विजय प्राप्ति तब तक सम्भव नहीं है, जब तक तुम्हें समय का, काल का ज्ञान नहीं हो जाता, क्योंकि प्रत्येक क्षण अपने-आप में अपना अलग महत्व लिए हुए होता है।
यही कारण है कि विशिष्ट क्षण मुहूर्त में की गई प्रत्येक साधना का सिद्ध होना, सफल होना निश्चित माना जाता है। क्योंकि समय का प्रभाव सर्वोपरी है, एक क्षण का विलम्ब उस कार्य की अपूर्णता का कारण बन सकता है। इसी तरह जातक के जन्मकुण्डली में विशिष्ट कालखण्ड की महत्ता को स्पष्ट रूप से समस्त विश्व के सुप्रसिद्ध ज्योतिषों द्वारा स्वीकारा जाता है, यदि गर्भ से बच्चा क्षणांश आगे-पीछे जन्म लेता है, तो हो सकता है कि उसका सम्पूर्ण ग्रहों के कुचक्र में उलझकर समाप्त हो जाये।
वहीं यदि वह श्रेष्ठ ग्रह राशियों के दृष्टि में जन्म लेता है, तो वह जन लोकप्रिय, अद्वितीय व्यक्तित्व प्राप्त कर लेता है। इन सभी क्रियाओं में काल का बहुत अधिक महत्व होता है। हालांकि जन्म-मृत्यु विरले व्यक्तियों के ही हाथ में होता है, परन्तु यदि जो क्षण, जो समय, जिस परिस्थितियों पर व्यक्ति का नियंत्रण है, वह उस क्षण का विशिष्ट रूप से उपयोग कर लें, तो ऐसी क्रियायें उसके जीवन का काया-कल्प करने में पूर्णता समर्थ होती हैं। समय की सदुपयोगिता साधक का सौन्दर्य और उसकी दक्षता है।
ऐसा ही विशिष्ट क्षण होता है कार्तिक अमावस्या अपने आपको सर्व लक्ष्मियों से युक्त करने के लिए, यह एक ऐसा दिवस होता है, जब जीवन के अंधकार को प्रकाशमय करने की क्रिया सम्पन्न की जाती है, अभावों, धनहीनता को समाप्त कर सौभाग्य युक्त बनाया जाता है।
गृहस्थ जीवन की सार्थकता छुपी है, इस स्वर्ण प्रभा लक्ष्मी साधना में, क्योंकि इस साधना के माध्यम से जीवन के सभी लक्ष्यों को पूर्णता प्रदान की जा सकती है। यह साधना जीवन की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सौ फीसदी खरी है, जिसे इन्द्र देव ने भी सिद्ध कर अपने राज्य को धन-धान्य वैभव, ऐश्वर्य, सुख-संसाधन से पूर्ण कर पाये थे।
धन के बिना सांसारिक जीवन अपूर्ण है। आज के युग में अर्थहीन ही शक्तिहीन है, इस परिवर्तनशील युग में सक्षम, समर्थ होना अपने आप में एक तरह की पूर्णता है। सक्षम, समर्थ व्यक्ति जीवन की अधिकांश समस्याओं पर सरलता से विजय प्राप्त कर लेता है। देवराज इन्द्र ने इस महत्वपूर्ण साधना को सम्पन्न कर अपने राज्य को सभी विशिष्टताओं से युक्त किया और उनके राज्य में निरन्तर धन की वर्षा अर्थात् धन की पूर्ति होती रहती है, इस साधना को पूर्णता से आत्मसात करने वाले साधक- साधिका अपने जीवन में स्वर्ण वर्षा अर्थात् आकस्मिक रूप से धन प्राप्ति करते रहते हैं।
लक्ष्मी का एक नाम चंचला है, संसार में कहीं भी देखें, कोई घर, परिवार, देश, समाज, जो हर समय धनी बना रहा हो, जिसने कभी निर्धनता ना देखी हो, ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा, जिसके यहां पीढ़ी-दर-पीढ़ी लक्ष्मी का निवास रहा हो, जिसके यहां कभी दरिद्रता ना आयी हो। जहां पर अथाह धन है, वहां भी धीरे-धीरे लक्ष्मी का ह्रास देखा जाता है।
लक्ष्मी की चंचलता इन्हें कहीं रूकने नहीं देती, नारायण ही ऐसे हैं, जहां लक्ष्मी अचंचला हो जाती हैं अर्थात जहां नारायण होते हैं, वहां भगवती लक्ष्मी की चंचलता समाप्त हो जाती है और इसीलिए लक्ष्मी अपने स्वभाव को त्याग कर नारायण के चरणों में शांति से बैठी हैं। यही उनका स्पष्ट संदेश है कि मुझे बुलाना हो तो पहले नारायण को बुला लो, मैं स्वतः ही तुम्हारे पास शांति पूर्वक आ जाऊंगी चिर-स्थायित्व रूप में।
लक्ष्मी को चिरस्थिर रूप में प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय यही है कि नारायण लक्ष्मी की आराधना की जाए। सद्गुरुदेव नारायण व मां भगवती के आशीर्वाद् से स्वर्ण प्रभा लक्ष्मी साधना महोत्सव कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर में 5-6-7 नवम्बर को सम्पूर्ण गुरु परिवार के सानिध्य में सम्पन्न होगा। गुरु-परिवार कुटुम्बमय इस महोत्सव में स्वर्ण प्रभा लक्ष्मी साधना, प्रवचन, हवन, अंकन, पूजन, साधना, दीक्षा आदि की विशिष्ट साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न होंगी। गुरुधाम के चैतन्य, पावन, निर्मल भूमि पर ऐसी साधनात्मक क्रियायें सपरिवार सम्पन्न करने से निश्चित रूप से जीवन में सर्व सौभाग्य का जागरण होता है व जीवन सभी व्याधियों, अभावों से मुक्त होकर विष्णु नारायण लक्ष्मी की चेतना से आप्लावित होता है, जिससे जीवन की अनेक मनोकामनाओं की पूर्ति संभव हो पाती है और जीवन सर्व सुख-लाभ युक्त बनता है।
प्रत्येक चैतन्य शुभ अवसर संकेत है जीवन के लक्ष्यों में और अधिक सक्रिय भूमिका के निर्वाह का- लक्ष्य प्राप्ति में आ रही बाधाओं, जटिलताओं के समापन का और इन चेतनावान क्षणों की स्पष्ट नीति होती है उनके लिए जो साधक हैं, जो सक्रिय हैं, जिनमें साधना के प्रति, गुरु के प्रति और अपने जीवन के प्रति गंभीरता है- ऐसे साधकों के लिए जो बदलाव को स्वीकार कर निरन्तर नवनिर्माण की ऊर्जा से युक्त होने के लिए व्यग्र हैं- जिनमें तड़फ़ है जीवन की सड़ी-गली स्थितियों से निकल कर पूर्णता प्राप्त करने की- वे साधक प्रत्येक शुभ, चैतन्य अवसर पर साधनारता होते ही हैं, क्रियारत होते हैं और अपनी क्रियाशक्ति में असीम वृद्धि करने में सफल भी होते हैं
परम पूज्य सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी
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