ऋग्वेद में लिखा है कि-
हे सद्गुरूदेव! जो ज्ञान की कामना करने वाले शिष्य गुरू माधुर्य गुण से प्रेरित हो कर गुरू की ओर इस प्रकार खिंचे चले आते हैं, जैसे मक्खियां मीठी वस्तु पर आ जाती हैं, ज्ञान के स्वामी गुरू में ज्ञान, ऐश्वर्य की कामना करने वाले शिष्य अपनी मनोकामना को इस प्रकार पूर्ण कर लेते हैं, जैसे रमणीय यान में बैठ कर यात्री यथेष्ट स्थान पर पहुंच जाता है।
इसका सीधा तात्पर्य है कि शिष्य केवल ज्ञान की कामना के साथ शुद्ध हृदय से गुरू के पास पहुंचे अपने मन में, बुद्धि में, विचार में, क्रिया में, सत्य, श्रद्धा, विश्वास, समर्पण और सेवा का भाव लेकर पहुंचे तो अपने आप जीवन की सारी कामनायें पूर्ण हो जाती है।
प्राणस्वरूप राजहंसो को नववर्ष का आह्नान मुझे हर बार तुम्हें आवाज देनी है, हर क्षण तुम्हें पुकारते ही रहना है। प्रत्येक जन्म में तुम्हें अपने पास बुलाते रहने का निमन्त्रण देते ही रहना है। क्योंकि तुम्हारा मेरा सम्बन्ध इस जन्म का नहीं पिछले सैकड़ो जन्मों का है। तुम्हारा मेरा सम्बन्ध केवल गुरू और शिष्य का ही नहीं प्राण और आत्मा का है। तुम्हारा मेरा सम्बन्ध गुरू और शिष्य का ही नहीं है जीवन की प्रेरणा और चेतना का है। और इसीलिये यह आवाज देना, यह पुकारना मेरा कर्त्तव्य है, मेरा धर्म है, मेरा चिन्तन है और मैं प्रत्येक क्षण अपने मानस के राजहंसो को आवाज देता ही रहूंगा।
अब तुम्हें अपने पंख पूरी तरह से फड़फड़ाने है। अब तुम्हें अपने मन में साहस का संचार करना है। मेरे साथ उड़ने की क्षमता मन में संजोनी है। मुक्त आकाश में मेरे साथ विचरण करने की पात्रता सिद्ध करनी है और उस साधना के आकाश में, ज्ञान के आकाश में, मेरे साथ उड़ते हुये जीवन का रस, जीवन का आनन्द और जीवन की पूर्णता प्राप्त लेनी है।
मैं तुम्हे आनन्द देना चाहता हूं सुख नहीं। मैं तुम्हें बुद्धित्व देना चाहता हूं। बुद्धित्व का तात्पर्य है जहां बुद्धि समाप्त हो जाती है। अहंकार का अंत, बुद्धि का अंत यह बुद्धित्व है, यह चेतना है, यह मेरे प्राण के तारों से तुम्हारे प्राण एकाकार करने की क्रिया है और इसी बुद्धित्व का संकल्प नववर्ष पर कराना चाहता हूं। नववर्ष पर मैं तुम्हें जाग्रत होने का संदेश देता हूं। जाग्रत व्यक्ति ही जगत में रह सकता है। जगत का अर्थ है दुनिया और इसमें पूर्णता के साथ जीने का साधन है जाग्रत अवस्था। नववर्ष पर मेरा यह संदेश है- अपनी सारी बाहृय इन्द्रियों को जाग्रत कर साफ-साफ सुन लो पहचान लो, और आत्मसात कर लो कि मैं तुम से क्या चाहता हूं।
मेरे साथ चलना है तो जीवन में तुम्हें अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा, तभी तुम आनन्द का अनुभव कर सकोगे, किसी भी यात्र पर चलने के लिये तैयार हो सकोगे, और मैं भी विश्वास के साथ यह देख सकूंगा कि अब यह शिष्य तैयार है, अब यह शिष्य अपनी शक्ति को, अपने लक्ष्य को पहिचान गया है और इसे विचार दिये जा सकते हैं, जो सीधे उसके हृदय में स्थान बनायेंगे न कि तर्क-वितर्क करते हुय मस्तिष्क में ही माप-तोल करेंगे। मैं अपने पूरे जीवन में बांटता चला गया आनन्द के वे बीज, अपने शिष्य के बीच, बहुतों ने इसे परखने का प्रयास किया, सोचा कि इससे हम सब प्राप्त कर लेंगे, और जो भौतिक इच्छायें हैं वे पूरी हो जायेंगी। बहुत कम शिष्यों ने सोचा कि गुरूदेव ने जो आनन्द का यह बीज दिया है, इसे तो हृदय के भीतर उगाना है, जो अनुभूति दी है अपने पूरे शरीर में विस्तार कर पल-पल आनन्द अनुभव करना है, न कि भटकना है इधर-उधर। गुरूदेव की आवाज के साथ अपने मन के आनन्द के भाव को उनके विचारों के साथ समाहित कर देना है, और मेरे वे शिष्य बहुत बड़ी जिम्मेदारी लेते हुये भी आनन्द से सराबोर है, क्योंकि उनके कार्यों में निश्चलता हैं, एक समर्पण है, लेने-देने का कोई भाव नहीं है।
मेरे शिष्यों! मैं अपने अनुभवों का बोझ तुम्हें नहीं सौंपूगा, तुम्हें अपनी पीड़ाओं की गठरी भी नही सौपूंगा, मैं तुम लोगों को आनन्द सौंपना चाहता हूं कि जो आनन्द तुम अनुभव कर सको, वह अनुभूति भी तुम तक पहुंचे, वह अनुभूति तुम्हारे भीतर रच जाये और इस अनुभूति को किसी और को दे सको, मैं तुम्हें गृहस्थ छोड़ने की भी सलाह नहीं देता, मैं चाहता हूं कि तुम्हारा दृष्टिकोण ही नहीं अपितु सारे विचार मन के भीतर आनन्द का उद्गम करने में प्रवाहित हो। तुम मुक्त होकर खुलकर हंस सको, एक आनन्द की मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर थिरक उठे, जीवन को देखकर तुम प्रसन्न हो सको जीवन का सार्थक भाव क्या है, इसका निर्णय तुम स्वयं कर सको और उसके अनुसार जीवन जी सको।
जो हमने प्रारम्भ किया है, उसमें बहुत विस्तार होगा, बहुत लोग साथ आकर जुड़ेगें, बहुत सारे लोगों की भटकन समाप्त होगी, अहोभाव की प्रक्रियायें साथ-साथ बैठ कर सम्पन्न होंगी, और ध्यान रहे कि यह क्रिया प्रारम्भ हो गई है, इसमें सब मिलकर कार्य कर रहे हैं, हर कोई अपनी जिम्मेदारी समझता तो है, लेकिन इस जिम्मेदारी को समझ कर पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करने को तत्पर शिष्य निश्चय ही कम हैं।
आज मैं संदेश देता हूं कि अपने भीतर झांक कर एक आत्म विश्लेषण की प्रक्रिया प्रारम्भ कर अपने आपको हृदय के आनन्द भरे दर्पण में देखकर मेरे हृदय से लगने के लिये आ जाओ——————–। नववर्ष की ज्योर्तिंमय नूतन चेतना से आप्लावित करने हेतु नव महालक्ष्मी भाग्य निर्माण चण्डी दीक्षा, सहस्त्रार चक्र जागरण कुण्डलिनी दीक्षा, सम्मोहन वशीकरण दीक्षा, स्वः रूद्राभिषेक, हवन, अकंन, प्रवचन की श्रेष्ठतम क्रियायें 1-2-3 जनवरी को त्रिवेणी भवन व्यापार बिहार, बिलासपुर (छ-ग) में सम्पन्न होगा। जिससे जीवन उमंग, जोश, उत्साह, स्फ़ूर्ति, सफ़लता, आर्थिक सृजन की चेतना से आपूरित होकर नववर्ष के प्रथम दिवस से ही श्रेष्ठता की ओर गतिशील हो सकेंगे।
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