क्योंकि यदि ग्रह शुभ भाव में है तो शुभ फल की प्राप्ति होती है और यदि ग्रहों का प्रभाव अशुभ हो तो अशुभ फल की प्राप्ति होती है और ऐसी शुभ-अशुभ स्थिति में व्यक्ति उन्नति-अवनति की स्थितियों से जूझता रहता है, उसके जीवन में निरन्तर प्रगतिमय स्थितियां स्थायी रूप से विद्यमान नहीं हो पाती हैं।
जिस प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए यह जरूरी है कि खाद्य, जल, लवण, विटामिन आदि का उचित अनुपात शरीर में हो, इसी प्रकार मानव की श्रेष्ठता एवं सफलता के लिए भी यह जरूरी है कि उसके जीवन में समस्त ग्रहों का उचित प्रतिनिधित्व होता रहे। एक उत्तम जीवन के लिए यह आवश्यक है कि उसका शरीर स्वस्थ हो, भाग्य प्रबल हो, सन्तान एवं पत्नी का पूर्ण सुख प्राप्त हो सके तथा निरन्तर धन अर्जित करने के उचित साधन उपलब्ध हो।
सूर्य ग्रहण के चैतन्य दिवस पर ग्रह स्वामी भगवान सूर्य की ओजस्वी-तेजस्वी चेतना आत्मसात कर साधक सर्व मंगलमय स्थितियों से युक्त होता है और अन्य अमंगल ग्रहों की अशुभता को समाप्त कर अपने जीवन को सुस्थितियों से युक्त करता हुआ निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर होता रहता है। जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, सम्पन्नता, आरोग्यता, संतान सुख की वृद्धि होती है।
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