मनुष्य की प्रकृति ही होती है, कि वह नित्य कुछ नया करे और जब ऐसा नहीं हो पाता तो उत्पन्न होती है-एक ऊब, एक खीझ, एक निराशा, बोरियत। और जो व्यक्ति अधिक चैतन्य है, अधिक बुद्धि सम्पदा युक्त है, अधिक जाग्रत है वे किसी भी कार्य से औरों की अपेक्षा जल्दी ही ऊब जाते हैं। क्योंकि उनकी बौद्धिक क्षमता अधिक विकसित होती है, वे अधिक कुछ कर सकने की क्षमता के लिये होते हैं, पर अवसर न मिल पाने से ऊब जाते हैं। परन्तु ये बोरियत, ये खीझ, ये ऊब, पशुओं को नहीं व्याप्त होती।
यदि जीवन में ऊब उत्पन्न हुई है, निराशा उत्पन्न हुई है, उदासी आई है, इसका अर्थ है, कि वह अधिक सजग चैतन्य व्यक्ति है, जो जीवन में कुछ नवीन करना चाहता है, यही सजग साधक की पहिचान भी होती है।
नववर्ष का संदेश ही होता है, नवीनता का कि अब जो बासी था, जो पुराना था, वह बीत चुका है, एक पूरा वर्ष आगे खड़ा है। वर्ष 2024 बहुत ही उथल-पुथल, उतार-चढ़ाव, संकट, दुःख, विषाद से भरा और निरुद्देश्य सा रहा है। साधकों के लिये वर्ष 2024 एक विषम वर्ष रहा है, जिसमें अनेक प्रकार के द्वन्द्व उपस्थित हुये, जीवन में निराशा की स्थिति भी निर्मित हुई, प्रयास किया तो असफलता और खीझ ही हाथ आई। सद्गुरूदेव जी ने स्पष्ट रूप से अपने शिष्यों के लिये प्रवचन में कहा था-
‘भारत में कोई मैं ही पहला गुरू नहीं हुआ हूँ, मेरे पहले भी बहुत गुरू हुये हैं, और आगे भी होते रहेंगे। लेकिन मैं वो पहला गुरू हूँ जो अपने शिष्यों को उपहार में कोई मंत्र नहीं, कोई आदेश नहीं, कोई निर्देश नहीं दे रहा हूँ, न कोई अनमोल सूत्र ही दे रहा हूँ। मैं तुम्हारी झोली में दे रहा हूँ यु़द्ध, और यह युद्ध तुम्हारा होगा तुम्हारे अपने ही समाज से, अपने ही आप से, अपनी मानसिकता से और अपने ही दोष और न्यूनताओं से। और इसके अलावा मैं तुम्हें कुछ नहीं दे रहा हूँ और दे रहा हूँ तो यह आशीर्वाद कि तुम जूझ सको, जूझ कर तथा और अधिक निखर कर उस स्वरूप में आ सको जिसमें मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ।’
और समय आ रहा है, निर्माण का, अपने अन्दर स्थापित शक्तियों को प्रकट करने का और इस नूतन वर्ष में बहुत कुछ नवीन कर देने का। और यह नवीनता आ सकती है, तो केवल साधनाओं के माध्यम से।
जीवन के अनेक उतार-चढ़ावों द्वारा सद्गुरू शिष्य को चोट करके उसके अहं को विगलित ही कर रहे थे, और इसके उपरांत जब शिष्य समर्पण भाव में आ जाता है, उसके बाद ही सद्गुरूदेव सिद्धियों का वर देते हैं।
नूतन वर्ष पर गुरूत्त्व स्थापन और समस्त साधनाओं में सिद्धि का इस साधना के माध्यम से वरदान प्राप्त हो, इससे अधिक सुन्दर और क्या हो सकता है? यह साधना प्रत्येक साधक को सम्पन्न करनी ही चाहिये, क्योंकि मात्र इसी एक साधना द्वारा उसके लिये सिद्धियों के द्वार खुल जाते हैं और यदि जीवन में भक्ति तो है, श्रद्धा तो है, विश्वास तो है, पर सिद्धि नहीं है, शक्ति नहीं है, क्षमता नहीं है, कुछ कर दिखाने का सामर्थ्य नहीं है, तो सिर गर्व से ऊपर उठा रह नहीं सकता। यदि आप साधक है, तो बासी पड़ गये जीवन में नवीनता, चैतन्यता मात्र सिद्धियों से ही आ सकती है, बाकी जीवन तो जैसा और जी रहे हैं, वैसे हम भी जी ही रहे हैं, उसमें कोई खास बात नहीं है। आप साधनाओं में पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर सकें, और अनुभव कर सकें कि साधनात्मक शक्ति क्या होती है, इसीलिये यह साधना सद्गुरूदेव जी द्वारा प्रदान की जा रही है, जो कि मात्र एक साधना नहीं अपितु एक हीरक खण्ड ही है, फिर भी यदि इसके मूल्य को पहिचाना न जा सके, तो इसमें गुरू का दोष नहीं कहा जा सकता।
इस दिवस का प्रारंभ गुरू स्मरण से करते हैं, गुरू पूजन से करते हैं और निश्चिन्त हो जाते हैं, कि अब सद्गुरूदेव की कृपा से सम्पूर्ण दिवस अनुकूल रहेगा। श्रद्धा से गुरू मंत्र की चार माला जप की जाती है और मन में यह भाव होता है, कि अब गुरूदेव ही रखवाले हैं, रक्षक है, उनके होते हुये मेरा कोई बाल बांका न हो सकेगा, कितने भी दुर्भाग्य से मैं क्यों न ग्रस्त होऊं, निश्चय ही सद्गुरूदेव मुझे उबार लेंगे। यही प्रातः काल पूजन का मर्म होता है, यही दिवस के प्रारंभ में गुरू चिन्तन से होता है और इसी भाव से यदि इस नये वर्ष का प्रारंभ ही गुरू पूजन से किया जाये, सद्गुरू की विशेष साधना द्वारा किया जाये, तो क्या आगे के सभी वर्ष ही आनन्द, मस्ती और गुरू कृपा से ओत-प्रोत नहीं हो जायेंगे?
साधना सामग्री- निखिलेश्वरानन्द सिद्धि यंत्र, पंचमुखी रुद्राक्ष, मूंगा, लघु नारियल, गोमती चक्र।
इस नववर्ष के स्वागत हेतु अमृतत्व सिद्धि प्रयोग को सम्पन्न करने के लिये 31-12-2024 रात्रि 09:12 बजे के इस पुण्य काल में शुद्ध होकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर आसन बिछाकर बैठ जायें। अपने सामने चौकी पर या पवित्र भूमि पर शुद्ध वस्त्र बिछा कर अपनी सुविधानुसार गुलाबी रंग से रंगे हुये चावलों से अष्ट दल कमल बना लें। धूप, दीप जला लें। सामने पूजन सामग्री रख लें। अष्टदल के मध्य में जल से भरा एक कलश स्थापित करें। यदि सम्भव हो तो गंगा जल भी मिला लें। गंगा जल मिलाते हुये ‘ऊँ अमृतो पर स्तरणमसि स्वाहा’ मंत्र का पांच बार उच्चारण करें। फिर ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र बोलते हुये जल में थोड़ा कुंकुंम और एक ‘पंचमुखी रूद्राक्ष’ डाल दें। कलश को किसी पात्र से ढक कर अपने हाथ से कलश का स्पर्श करते हुये निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापि हितं मुखम्।
तत्वं पूषन्नपा वृणु सत्यधर्माय दृष्टये।।
मम प्राण स्वरूपं, देह स्वरूपं, चिन्त्यं स्वरूपं।
समस्त स्वरूपं गुरूं आवाहयामि नमः।।
न निरोधो न चोत्पत्ति र्न बद्धो न च साधकः।
न मुमुक्षुर्न वै मुक्तः इत्येषा परमार्थता।।
इसके बाद गुरू मंत्र का 108 बार जप कर, प्रणाम कर उठ जायें। अगले दिन अर्थात 1-1-2025 की प्रातः रूद्राक्ष को पूजा स्थान में रख दें। कलश को उठा लें, उसके जल को बाल्टी में अधिक जल में मिलाकर उससे कायाकल्प, आत्माभिषेक एवं साधकोचित शरीर प्राप्ति हेतु स्नान करें।
इसके बाद अपने आसन पर आकर सामने वस्त्र पर बने अष्ट दल के मध्य में ‘निखिलेश्वरानन्द सिद्धि यंत्र’ को स्थापित करें। पूर्व, उत्तर, दक्षिण एवं पश्चिम- इन चारों दिशाओं में एक-एक सुपारी पर मौलि बांध कर स्थापित करें। इस प्रकार पूर्व में सद्गुरू, दक्षिण में परम गुरू, पश्चिम में परात्पर और उत्तर में पारमेष्ठि गुरू का स्थापन करें। ईशान में वही पंचमुखी रूद्राक्ष (शिव), अग्नि में मूंगा (गणपति), नैऋृत्य में लघु नारियल (लक्ष्मी), वायव्य में गोमती चक्र (विष्णु) स्थापित करें।
पंचपात्र में रखे जल को चारों दिशाओं में छिड़के-
ऊँ सहस्त्र शीर्षा पुरूषः सहस्त्राक्षः सहस्त्र पात्।
स भूमिं सर्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद् दशांगुलम्।।
स्नानं समर्पयामि बोलकर यंत्र एवं सभी स्थापित देवताओं को स्नान कराकर पोछ दें। फिर सभी देवताओं पर निम्न मंत्र बोलते हुये क्रमानुसार कुंकुंम, पुष्प आदि चढ़ायें।
ऊँ ऐं एष गन्धः चन्दनं समर्पयामि नमः। (कुंकुंम अर्पित करें)
ऊँ ऐं इदं सचन्दनं पुष्पं समर्पयामि नमः। (पुष्प)
ऊँ ऐं एष धूपः समर्पयामि नमः। (धूप दिखायें)
ऊँ एष दीपः समर्पयामि नमः। (दीप दिखायें)
ऊँ ऐं इदं नैवेद्यं सर्व देव रूपाय निखिलेश्वराय समर्पयामि नमः। (नैवेद्य अर्पित करें)
नैवेद्य ग्रहण के लिये दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
नैवेद्यं विविधं देव शर्करा च विनिर्मितं, मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वर।
इसके बाद एक माला गुरू मंत्र जप करें। इसके बाद आगे दिये श्लोकों को अलग अलग दिशाओं में मुख करते हुये निखिल स्तवन की धुन में पाठ करें। सबसे पहले पूर्व में स्थापित सद्गुरूदेव जी को प्रणाम कर निम्न श्लोक का 5 बार उच्चारण करें-
गुरू श्री नेत्रों में विशद करूणा सागर पले, कृपा दृष्टि द्वारा तन व मन के पातक धुले।
बने झांकी हो तो गुरू चरण की जन्म सफल, बने गंगा स्नानी निखिल करूणा से पल पल।।
दक्षिण दिशा में स्थापित परम गुरू को प्रणाम करें-
प्रभो प्राणात्मा श्री निखिल गुरू के रूप विविध, स्थलों में भी लाखों प्रगटित बने ये बहुविध।
असीमा है शक्ति प्रगट बनने शिष्य गण में, अनेकों रूपों से हित सुख करें भक्त गण में।।
पश्चिम दिशा में परात्पर गुरू को प्रणाम कर प्रार्थना करें-
स्वयं कृष्णात्मा हो गुरू सकल ही कार्य करते, सुपूर्णों, ज्ञानों की लहर बिन रोके वितरते।
पुकारूं मैं पावों पर निखिल के हे गुरूवर, सदा श्रेयः फैले अमृत फल सिद्धाश्रम पर।।
उत्तर दिशा स्थित पारमेष्ठि गुरू को प्रणाम कर प्रार्थना करें-
जभी दैवी आत्मा अवतरित होती अवनि में, परम पुण्या फैले मति गति तनों में, धमनि में।
सभी सांगों पांगों अनघ गति के ज्ञान वरण, गुरू श्री से सारी गति विधि हुई शुद्धि करण।।
इसके बाद विभिन्न कोणों में स्थापित देवताओं को क्रमानुसार प्रणाम करें। सर्वप्रथम ईशान कोण स्थित भगवान शिव को प्रणाम करें और निम्न मंत्र का 108 बार जप करें-
फिर अग्नि कोण स्थित भगवान गणपति को प्रणाम कर निम्न मंत्र का 108 बार जप करें-
नैऋृत्य कोण स्थित लक्ष्मी को प्रणाम कर निम्न मंत्र का 108 बार जप करें-
वायव्य कोण स्थित भगवान विष्णु को प्रणाम कर निम्न मंत्र का 108 बार जप करें-
अंत में हाथों में पुष्प लेकर नूतन वर्ष में पूर्ण आरोग्यता, कार्य-व्यापार वृद्धि, कृषि वृद्धि, धन लक्ष्मी, सुहाग सौभाग्य, संतान सुख, सफलता, साधनात्मक उच्चता, साधनाओं में पूर्ण सिद्धि, दिव्यता, पूर्ण गुरू कृपा, आनन्द, सर्व कल्याण के लिये प्रार्थना करते हुये इस श्रेष्ठतम नववर्ष प्रारम्भ साधना के साथ नूतन वर्ष में पदार्पण करें।
इस एक दिवसीय साधना को नववर्ष प्रारंभ के अवसर पर यदि पूर्ण भाव से उपरोक्त विधि अनुसार सम्पन्न कर लिया जाये, तो सद्गुरूदेव जी नववर्ष के प्रथम सूर्योदय के साथ साधक के साधना स्थल पर उपस्थिति होती ही है और उसे गुरूदेव जी का विशेष स्नेहाशीर्वाद प्राप्त होता है।
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