समस्त जीवन को प्रेम, वैभव एवं प्रसन्नता से लबालब आपूरित कर देने वाली है यह अद्वितीय साधना जो गोपनीय, रहस्यमय साधना थी, पर अब इन पन्नो के माध्यम से यह गोपनीय नहीं रही।
अरमां जब पूरे नहीं होते, दिल खामोश हो जाता है और व्यक्ति उदास, परेशान, चिन्तित रहने लगता है, क्योंकि मन में तो है कुछ पा लेने की अभिलाषा …………… और जब वह पूरी नहीं होती, तब जीवन में प्रेम, उल्लास, वैभव, प्रसन्नता भी नहीं रहती…… इच्छित कामनाओं की पूर्ति ही तो वह आनन्दनुभूति है, जिससे मन तृप्ति का अनुभव करता है।
आज 85 प्रतिशत लोग ऐसे है, जो इच्छित कामनाओं की पूर्ति नहीं कर पाते, क्योंकि व्यक्ति के पास किसी न किसी चीज का अभाव रहता ही है, यदि उसके पास धन-वैभव है, तो प्रेम नहीं है, यदि प्रेम है, तो धन नहीं है…… और यदि अन्य सुविधाएं है, तो शांति का अभाव है। व्यक्ति चाहता है, कि वह कम से कम समय में ऐसे कार्य करे, जिससे कि शीघ्र से शीघ्र उसके अभावों की पूर्ति हो सके।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य सुखों की प्राप्ति और दुःखों की पूर्णरूप से निवृति है……. और इन दुःखों की निवृति तभी हो सकती है, जब साधना के प्रभाव से हम शुद्ध व दोष रहित हो सकें। इसलिये साधनात्मक शक्ति हमारे जीवन के लिये विशेष महत्त्वपूर्ण है, जिसके बल पर हम बाधाओं को सुगमता से पार करते हुये अपने उद्देश्य की पूर्ति आसानी से कर सकते है।
जीवन में कुछ घटनायें ऐसी घटती है, जिनका हमें पूर्वानुमान भी नहीं होता, वे अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी । जो कार्य सामान्य मानव अपने प्रयत्नों से नहीं कर सकता, वह साधना की अदृश्य शक्ति के बल पर किया जा सकता है, साधना के बल पर अपने जीवन की न्यूनताओं को दूर किया जा सकता है। अतः साधना शक्ति सफलता का वह सशक्त माध्यम है, जिससे साधक पूर्ण निष्ठा भाव से मंत्र जप के बल पर, अपने तप के बल पर जो चाहे, जैसा चाहे वैसा कर सकता है।
यदि जीवन में यश, वैभव, प्रतिष्ठा की कमी हो, चेहरे पर तनाव की रेखायें पड़ गई हों या प्रेम का अभाव हो, तो साधक को चाहिये कि वह इस ‘‘शाकम्भरी प्रयोग’’ को कर अपने जीवन की कमियों को पूरा कर ले।
‘‘शाकम्भरी देवी’ अपने आराधक को वह सब कुछ देने में समर्थ है, जो उसकी मनोकांक्षा है। यह अत्यंत ही गोपनीय एवं महत्त्वपूर्ण साधना है, जिसे प्रत्येक को, चाहे वह स्त्री हो, पुरूष हो सम्पन्न करना ही चाहिये।
गुरूधाम में ऐसे अनेकों लोग आते है, जो अपने जीवन में अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है, दुःखी है, पीड़ित है, कष्ट में जीवन जीते-जीते जो मृतप्रायः हो गये है और एक आशा की, एक उम्मीद की किरण अपने मन में संजोय है, गुरूदेव जी से मिलने के लिये कि शायद ऐसा कोई उपाय प्राप्त हो जाये और उनके जीवन में परिवर्तन आ जाये, उनके कष्ट दूर हो सकें, वे अपनी कमियों को न्यूनताओं को, अभावों को दूर कर पायें। अपने भाग्य का रोना रोते हुये, जब वे गुरूदेव से मिल कर वापिस लौटते है, तो उनका चेहरा एक सुन्दर मुस्कान से दमक रहा होता है, क्योंकि उन्हें कोई न कोई उपाय (साधना) गुरूदेव जी दे ही देते है, जिसे पाकर उनके चेहरे पर प्रसन्नता व्याप्त हो जाती है।
ऐसे ही कुछ व्यक्ति, जिनके चेहरे मुरझाये हुये, नीरस, जड़वत जैसे अब कुछ शेष रहा ही न हो जीवन में जो अपनी ही लाश को अपने ही कंधे पर ढोये चले जा रहे हो, गुरूदेव से मिले, उनकी परेशानियों और दुःखों के कारण को जानकर, उनकी समस्याओं के समाधान के लिये गुरूदेव ने उन्हें ‘‘शाकम्भरी प्रयोग’’ सम्पन्न कराया।
एक दिन के इस प्रयोग ने आश्चर्यजनक परिणाम दिये और ऐसा लगा, मानो उनके मृतवत शरीर में किसी ने प्राण फूंक दिये हो…… जब वे साधक दोबारा गुरूदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु गुरूधाम पहुँचे, तो उनका रोम-रोम उनकी सफलता का परिचय देता प्रतीत हो रहा था….. उन्हें देखकर यह नहीं लगता था, कि वे वही है जो कुछ दिनों पहले गुरूदेव से मिलने आये थे…. अब उनके जीवन में खुशियां ही खुशियां थी, मानो धधकते अंगारों पर बंसत ने पाव रख दिये हों। सूखा, बेजान सा जीवन जैसे पतझड़ के बाद सावन का मौसम आया हो, ऐसा ही लग रहा था……. पहले से भी अधिक दृढ़ता, विश्वास, श्रद्धा और प्रेम झलक रहा था उनके चेहरों से……. उन्हें देखकर तो यही लग रहा था, कि उन्होंने जीवन में जो चाहा, वह सब कुछ मिल गया हो।
और साधना का तो मतलब ही यह है कि जो चाहें, वह प्राप्त हो जाय आवश्यकता है- धैर्य, विश्वास और आस्था की। जब तक मंत्र जप के प्रति पूर्ण निष्ठता का भाव नहीं होगा, तब तक अपने आप को वहीं खड़ा पायेंगे, जहाँ से आपने चलना प्रारम्भ किया है।
जब वे साधक गुरूदेव जी से मिले, तो गुरूदेव ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा, कि यह शाकम्भरी प्रयोग जो आप लोगों ने सम्पन्न किया, वह अत्यन्त ही दिव्य एवं गुह्य प्रयोग है और पहली बार ही आपको सम्पन्न करवाया है, जिससे कि इसका प्रत्यक्ष फल प्राप्त कर, आप इसकी प्रामाणिकता का अनुभव कर सकें।
गुरूदेव के द्वारा बताई गई हर साधना, हर क्रिया अपने आप में महत्त्वपूर्ण है, जीवनोपयोगी है, पूर्णता प्रदायक है।
समय-समय पर साधक की आवश्यकता के अनुसार ही गुरूदेव उन्हें भिन्न-भिन्न प्रयोग सम्पन्न करवाते रहते है तथा उसे कुछ ही लोगों तक सीमित न रखकर प्रामाणिक रूप में समाज के सामने पत्रिका के माध्यम से स्पष्ट कर, जन कल्याण का कार्य करते है। शाकम्भरी प्रयोग ऐसा ही अद्वितीय प्रयोग है, जिससे साधक अपने जीवन की न्यूनताओं को दूर कर अपने जीवन में प्रेम, वैभव और प्रसन्नता को हमेशा के लिये स्थापित कर सकेंगे।
इस एक दिवसीय प्रयोग की सफलता तो साधक के चेहरे से खुद झलकने लगेगी, क्योंकि यह प्रयोग समस्त जीवन को प्रेम, वैभव और प्रसन्नता से लबालब आपूरित कर देने वाला है, जो कि सरल और सफलता प्रदान करने वाला अचूक प्रयोग है, पत्रिका के इन पन्नो पर प्रकाशित होने के बाद से कोई भी प्रयोग गोपनीय नहीं रहा, क्योंकि गुरूदेव अपने ज्ञान को शिष्यों में उड़ेल देना चाहते है। इसलिये समयानुसार वे इन साधना पुष्पों से साधकों का जीवन वसंतमय, उत्सवमय, प्रेममय, आनन्दमय बना देना चाहते है।
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