पूज्यपाद गुरूदेव ने हमारे ऋषि-मुनियों के ‘गणना-चिन्तन’ के क्रम को मुखरित करते हुये यह स्पष्ट किया था, कि वास्तव में मकर संक्रान्ति का पर्व केवल शरद ऋतु के उपरांत आने वाली सुखद ऊष्मा के स्वागत का ही अवसर नहीं है, वरन् साधना-पर्व भी है, क्योंकि इस दिवस को सूर्य ब्रह्माण्ड में ऐसी स्थिति पर होता है, जिससे साधक किसी भी साधना के द्वारा उसकी तेजस्विता को अपने प्राणों में पूर्णता से उतार सकता है। सूर्य का भारतीय चिंतन में केवल एक ग्रह के रूप में अथवा ज्योतिषीय ढंग से ही महत्त्व नहीं है वरन् इसे साक्षात् प्राण व आत्मा का ही मूर्तिमंत स्वरूप माना गया है, जिस प्रकार चन्द्रमा को मन का प्रतीक कहा गया है।
वैज्ञानिक जिस सूर्य को अब Solar Energy के अक्षय स्त्रोत के रूप में देख कर कृतज्ञ हो रहे हैं, भारतीय चिंतन उसे युगों पूर्व ऊर्जा के स्त्रोत या बिजली बनाने के कारखाने के रूप में न देखकर साक्षात् जीवनदाता के रूप में वंदित करता आ रहा है।
उपनिषद् में दृष्टव्य है, कि भगवान सूर्य से किंचित गुह्य रूप में भी याचना की गयी है, कि वे उसे (अर्थात् साधक को)
केवल अपनी प्रखर रश्मियों से दग्ध ही न करें वरन् उसके भीतर समाहित होकर साधक को तेजवान भी बनायें, उपरोक्त स्तुति में ‘ज्योति को पूंजीभूत’ करने का यही अर्थ है, क्योंकि सूर्य का तेज कभी शांत नहीं हो सकता, किंतु साधक द्वारा उसे समाहित कर लेने के उपरांत वह ‘शांत’ हो सकता है, यों तब साधक का व्यक्तित्व भी सूर्यवत् प्रखर हो जाता है।
मकर संक्रान्ति के अवसर पर सूर्य-साधना का लोक व्यवहार में सदा से महत्त्व रहा है। अंतर केवल इतना है, कि जहां सामान्य व्यक्ति केवल पूजन के द्वारा अपनी श्रद्धा भावना भगवान सूर्य को निवेदित करते है, वहीं साधक उनके वरदायक प्रभाव को किसी विशिष्ट साधना के द्वारा अपने शरीर में उतारने का प्रयास करता है, जिसके फलस्वरूप उसके जीवन के विविध पाप-दोष एवं जड़तायें समाप्त हो सकें।
सूर्य की साधना का महत्त्व एक छोटे से उदाहरण से ही समझा जा सकता है, कि जिस प्रकार एक छोटी-सी खिड़की खोलने पर कमरे का अंधकार पूरी तरह से समाप्त हो जाता है तथा उजाले का संचार हो जाता है, उसी प्रकार उचित साधना के द्वारा एक छोटी-सी खिड़की खोलने भर से ही जीवन की दरिद्रता, जड़ता, मलिनता और चिंता आदि का अंत होने की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है।
क्या आप अपने नववर्ष का आरम्भ इसी रूप में नहीं करना चाहेंगे?
मकर संक्रान्ति के पर्व को यदि ‘प्राणष्चेतना के पर्व’ की संज्ञा दी जाये, तो सर्वाधिक उचित होगा और यह भी सत्य है, कि जब तक जीवन में प्राणश्चेतना का प्रवाह नहीं होता, तब तक न तो व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है, न सुखी और न ही आध्यात्मिक। इन अर्थो में मकर संक्रान्ति की साधना चतुर्विध प्रभाव प्रदान करने में समर्थ है, जो मूलतः साधना ही है।
साधना-विधान
14 जनवरी 2025, मकर संक्रान्ति के दिन साधक ब्रह्म मुहुर्त में उठकर अपना दैनिक क्रिया कलाप और गुरू पूजन सम्पन्न करें। उसके पश्चात एक थाली में कुंकुम से सूर्य का चित्र अंकित कर, पुष्प तथा चावल का आसन देकर मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त सूर्य यंत्र स्थापित करें।
साधक लाल वस्त्र धारण करें तथा पूर्व दिशा की ओर मुँह कर बैठें।
सूर्य यंत्र का पूजन रक्त चन्दन, लाल पुष्प इत्यादि से सम्पन्न करें।
अब साधना में आवश्यक द्वादश (12) लघु नारियल जो कि भगवान आदित्य (सूर्य) के द्वादश रूप है उनकी प्रार्थना निम्न प्रकार से करते हुये एक-एक लघु नारियल सूर्य यंत्र के चारों ओर गोल घेरे में स्थापित करें।
इसके पश्चात दीपक प्रज्जवलित करें और अपने सम्पूर्ण परिवार की सुख-शांति हेतु तथा रोग, दरिद्रता-नाश हेतु भगवान आदित्य से प्रार्थना करें-
इसके पश्चात प्राणश्चेतना माला से निम्न आदित्य मंत्र का 108 बार अर्थात् 1 माला मंत्र-जप धीरे-धीरे शांति से सम्पन्न करें।
यदि साधक धैर्य पूर्वक इस मंत्र की एक माला मंत्र जप (अर्थात् 108 बार उच्चारण) कर सके, जो अत्युत्तम माना गया है।
अपने पूर्वजों द्वारा प्रणीत किसी भी साधना में मुहूर्त विशेष पर भावपूर्वक संलग्न होने पर उनका भी सूक्ष्म रूप से आशीर्वाद मिलता ही है। पाश्चात्य पद्धति से नववर्ष तो कुछ घंटों के कोलाहाल से मनाया जाता है, जबकि अपनी परम्परागत पद्धति को अपना कर पूरे वर्ष को ही उल्लासमय बनाया जा सकता है। ऋषियों ने इसी कल्याणकारी भावना से ओत-प्रोत होकर उन पद्धतियों की रचना की थी।
साधना की समाप्ति पर सभी सामग्रियां जल में विसर्जित कर दें तथा उदित होते हुये नववर्ष के सूर्य को कुंकुम, अक्षत, पुष्प मिश्रित जल से अर्घ्य दें।
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