दस महाविद्यायें दस प्रकार की शक्तियों की प्रतीक देवियां है, अलग-अलग कार्यो हेतु शिव के वरदान स्वरूप उनके शक्ति स्वरूप इन दस देवियों की उत्पति मानी गई है, पूरे वर्ष में अलग-अलग महीनों में प्रत्येक महाविद्या का दिवस अवश्य आता है और उस समय साधक इनकी साधना कर अपना जीवन धन्य करते है, अपने जीवन में शक्ति के जिस तत्व की कमी होती है, उस कमी को पूरा करने के लिये विशेष महाविद्या की साधना अवश्य करते है, साधना में साधक आर्द्र मन से करूण हृदय से आंसुओं की पुकार से महाविद्या का आह्वान करता है और साधक को साधना में सिद्धि का वरदान अवश्य प्राप्त होता है।
दस महाविद्याओं का स्वरूप भी निराला है, कोई देवी धन पक्ष की देवी है तो कोई संहार पक्ष की, यह तो प्रत्येक देवी के स्वरूप से ही स्पष्ट है।
1. काली महाविद्या- शक्ति संहार की महाविद्या, उग्र स्वरूप, 2. तारा महाविद्या -बुद्धि, ज्ञान, आकस्मिक लाभ, शक्ति महाविद्या, 3. षोड़सी त्रिपुर सुन्दरी- पुरूषार्थ, पराक्रम, आनन्द, सौभाग्य, गृहस्थ सुख शक्ति महाविद्या, 4. भुवनेश्वरी-ऐश्वर्य, सम्पन्नता, मनोरथ, सिद्धि की सौम्य शक्ति महाविद्या, 5. छिन्नमस्ता- बाधा हन्ता, शत्रु स्तम्भन, वशीकरण, बाधा शांति, राजकीय विजय की शक्ति महादेवी, 6. त्रिपुर भैरवी- भय नाश, आत्म शक्ति, भूत-प्रेत बाधा शांति, शक्ति की महाविद्या 7. धूमावती-सम्पति, स्थायी-तत्व, प्रचंड शत्रु, आपत्ति निवारण, संतान रक्षा, शक्ति की महाविद्या, 8 कमला महाविद्या-धन, अर्थ, व्यापार, सम्पति, मान-सम्मान, स्वरूप शक्ति की महाविद्या, 9. बगलामुखी-त्रिशक्ति, काली कमला भुवनेश्वरी का संयुक्त स्वरूप, समय सिद्धि, रक्षा की प्रधान महाविद्या, 10 मातंगी- वाणी विलास आनन्द भावना, प्रेरणा, काम सरसता की शक्ति स्वरूप महाविद्या।
इस प्रकार दस महाविद्याओं का स्वरूप निराला है, उनका साधना क्रम अलग-अलग है, योग्य साधक जानते है कि किस समस्या के लिये किस साधना को सम्पन्न किया जाय, तात्कालिक फल प्राप्ति के लिये किस महाविद्या की उपासना की जाय, दस महाविद्याओं का एक साथ ध्यान करना संभव नहीं है लेकिन?
वर्ष में एक दिन ऐसा भी दस महाविद्या साधना के लिये नवरात्रि का प्रमुख विधान है, इसके अतिरिक्त प्रत्येक महाविद्या का साधना हेतु नियत दिवस है, पर वर्ष में एक दिवस ऐसा भी है, जिसे दस माता दिवस कहा जाता है, और यदि यह कहा जाय कि दस महाविद्या साधना के लिये सम्पूर्ण मुहुर्त युक्त तान्त्रोक्त सिद्धि युक्त यह दिवस है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह दिवस है- गुप्त नवरात्रि और वर्ष में यह दो बार आती है एक है माघी नवरात्रि जो माघ शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होती है और दूसरी आषाढ़ी नवरात्रि जो आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होती है। यह दोनों ही पर्व विशेष रूप से दस महाविद्या सिद्धि पर्व है।
इस दिन क्या करें?
तांत्रिक साधना हो अथवा मांत्रिक साधना सात्विक साधना हो अथवा तीव्र साधना , उग्र हो अथवा सौम्य मुहुर्त सिद्धि से कार्य करने से ही सफलता प्राप्त होती है, इस महत्त्वपूर्ण सिद्धि दिवस को सब बातें भूला कर तैयार हो जाय विशेष साधना हेतु।
बनना है पूर्ण पुरूष
पूर्ण पुरूष वही कहलाता है, जिसके जीवन में सभी प्रकार के सुख हो, सभी शक्तियों का आशीर्वाद हो, यदि धन है लेकिन स्वास्थ्य नहीं है, सब कुछ है लेकिन संतान सुख नहीं है, आर्थिक स्थिति श्रेष्ठ है लेकिन शत्रु प्रबल है तो जीवन पूर्ण नहीं है, अतः इस दिन जीवन में पूर्णता हेतु, दसों महाविद्याओं का आह्वान एक साथ करना है, मातंगी की कृपा प्राप्त करनी है तो बगलामुखी का आह्वान कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनी है, धन की अधिष्ठात्री महाविद्या कमला की कृपा आवश्यक है तो जीवन शेर की तरह जीने के लिये महाकाली का वरदहस्त भी आवश्यक है, इन सब कारणों से इस महान दिवस का महत्त्व भी अधिक हो जाता है।
इस दिवस को साधक ब्रह्म मुहुर्त में ही उठकर स्नान कर अपना नित्य कर्म सम्पन्न कर इस विशेष साधना के लिये अपने आपको तत्पर कर ले, गुरू मन्त्र की एक माला का जप कर गुरू पूजन सम्पन्न कर अपने आपको मानसिक रूप से तैयार कर ले कि मुझे इस दिवस को इस वर्ष का महत्त्वपूर्ण दिवस स्थापित करना है, एक-एक क्षण का पूरा उपयोग करना है, यदि घर में एकान्त की सुविधा न हो तो किसी अन्य स्थान पर जा कर साधना सम्पन्न करे, सात्विक भोजन अर्थात् केवल दूध तथा फलाहार ही ग्रहण करना है।
दस महाविद्याओं के सम्मिलित स्वरूप हेतु संयुक्त ‘‘दस महाविद्या महायन्त्र’’ आवश्यक है, इस यन्त्र को स्थापित करने से पहले स्थान को साफ स्वच्छ कर जल छिड़क कर एक लाल कपड़ा बिछा कर मध्य में यन्त्र को स्थापित कर प्रत्येक महाविद्या का ध्यान कर पूजन सम्पन्न करे, यह पूजन केवल कुंकुंम से सम्पन्न करना है, अपने सामने दस फल और दस पुष्प स्थापित कर प्रत्येक पर एक-एक अगरबत्ती जला दें और फिर ऊपर दिये गये क्रमानुसार साधना प्रारम्भ करे, इस प्रकार प्रत्येक महाविद्या के मन्त्र की एक माला और फिर एक माला गुरू मंत्र का जप कर साधना करें, सर्वप्रथम काली का मंत्र जप कर पूर्ण श्रद्धा सहित उसके लिये अर्पित फल को ग्रहण कर ले, फिर पुनः एक माला गुरू मंत्र का जप कर तारा के मन्त्र का जप करें और तारा महाविद्या प्रसाद ग्रहण कर ले, इस प्रकार यह क्रम पूरा होने के पश्चात् गुरू आरती सम्पन्न कर शान्त भाव से उसी स्थान पर कम से कम ढाई घड़ी अर्थात् एक घण्टे तक बैठ कर अपने जीवन की समस्त कमियों, बाधाओं के निराकरण हेतु प्रार्थना करें-
जो साधक किसी एक महाविद्या की सिद्ध करना चाहता है तो उस विशेष महाविद्या का यन्त्र स्थापित कर केवल उसका मन्त्र जप अनुष्ठान भी कर सकता है।
दस महाविद्या अनुष्ठान हेतु-‘‘तांत्रोक्त महामाया महामाला’’ जो पूर्ण अनुष्ठान एवं प्राण संचालित मन्त्रों से चैतन्य है, उसी से मन्त्र जप सम्पन्न करें। इस माला को अपने प्राणों से प्रिय समझे।
इस प्रकार पूजन समाप्त कर साधक अपने जीवन में साधना का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है, घर जाकर प्रेम से अपने परिवार के साथ भोजन करे, संभव हो तो कुछ दान-दक्षिणा, उपहार अवश्य दें।
याद रखे कि जीवन में आगे बढ़ना है, और जीवन का नियंत्रण आपके अपने हाथ में रखने के लिये दस महाविद्याओं की अनंत कृपा आवश्यक है।
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