भाग्य का लेखन ईश्वर के साथ साथ मनुष्य अपने हाथ में भी हैं और यदि सरस्वती की कृपा हो जाये तो साधक अपना भाग्य स्वयं लिख सकता है, अपने भाग्य को संवार सकता है , क्योंकि वसन्त पंचमी तो सरस्वती जयन्ती भी है, अतः इस अवसर पर प्रस्तुत हैः-
मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति उसका वचन है, आप जो भी बोलते हैं वे शब्द ही आपके सबसे बड़ी अस्त्र-शस्त्र हैं, दूसरों को प्रभावित कर अपनी उचित कार्य सिद्धि वाणी के माध्यम से ही संभव हैं और जब यह वाणी शब्द बन कर आपके भीतर के कुण्डलिनी चक्र के जाग्रत सहस्त्रार से निकले तो साधक को जो सिद्धि प्राप्त होती है वह वाक् सिद्धि कहलाती है।
वरदान और श्राप वाक् के ही स्वरुप हैं, इस वाणी में जो क्षमता है, वह न तो खरीदी जा सकती है और न किसी से प्राप्त की जा सकती है, यह तो अपने भीतर क्षमता उत्पन्न कर प्राप्त की जा सकती है, ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ संरचना मानव में कोई भेद नहीं है, शारीरिक रुप से सभी समान हैं, भेद केवल वाक् सिद्धि का ही है और यदि यह वाक् सिद्धि बचपन से ही जाग्रत होने लग जाये तो वह बालक निश्चिय ही जीवन में उच्चतम शिखर पर अवश्य पहुँचता है।
वसन्त पंचमी के दो मुख्य स्वरुप हैं, एक स्वरुप तो अपने जीवन में नया वसन्त प्रारम्भ करने का है अर्थात् अपनी भाग्य रेखा को मोड़ने का, अपने जीवन तन्त्र को अपने हाथ से लिखने का, नवीन निर्माण करने का सिद्ध दिवस है, आप क्या थे और अब क्या हैं, इस पर विचार कर पछताने की आवश्यकता नहीं है, विचार तो यह करना है कि अब क्या करना हैं और इस वसन्त पंचमी से, इस नये विचार को कार्य रुप देना ही है, ऐसा संकल्प ले कर आपको अपने लिये विशेष प्रयोग करना है-
वसन्त पंचमी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर धवल वस्त्र धारण करें और बिना किसी ओर देखे सीधे अपने पूजा स्थान में जायें, अपने सामने एक थाली में चन्दन से आठ बिन्दियां एक लाइन में लगायें, प्रत्येक बिन्दी पर एक चावल की ढेरी बनाएं, प्रत्येक के आगे एक-एक दीपक जला दें, दीपक का मुँह आपकी ओर हो।
इससे पहले पूर्व रात्रि में तालाब अथवा सरोवर से लाई हुई गीली मिट्टी का एक बड़ा गोला बना दें और इस गोले के भीतर तांत्रोक्त सिद्धि “पारिजातेश्वरीब्रह्मशक्तिकंकण“डालदें, मिट्टी के गोले को कुंकुम, अबीर, गुलाल अर्पित कर पूर्ण रुप से रंगीन कर दें, तथा इस पर तीन अगरबत्ती लगाएं, थाली में जो आठ चावल की ढेरियां हैं, उन पर एक-एक सुपारी रख कर सात भाग्य देवियों -ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी, महालक्ष्मी तथा चामुण्डा की स्थापना करें।
अब प्रत्येक ढेरी में से थोड़े-थोड़े चावल लें, और मिट्टी के गोले पर चढ़ा दें, फिर अपने दोनों हाथ इस ब्रह्म शक्ति गोलाकार पिण्ड पर रख कर निम्न मन्त्र का 108 बार जप करें –
अब खड़े हो कर सारे चावल एक साथ एकत्र कर अपने हाथों से लेकर पहिले मस्तक से फिर नेत्रों के, फिर मुख के स्पर्श कराएं और उसी स्थान पर बैठ कर मिट्टी के पिण्ड को फोड़ कर “पारिजातेश्वरीब्रह्मशक्तिकंकण’’ अपने हाथ में धारण कर लें तथा शेष सभी सामग्री शुद्ध सफेद कपड़े में बांध कर नदी, सरोवर, तालाब अथवा पीपल वृक्ष में अर्पित कर दें।
यह प्रयोग एक विशेष प्रकार का तांत्रिक प्रयोग है, और शास्त्रोक्त कथन है कि यह पूजा करने के पश्चात् धारण किये जाने वाले कंकण को किसी भी व्यक्ति को दान में अथवा भेंट में न दें इसे सबसे बड़ी सम्पत्ति मानते हुए उसे हर समय शरीर से स्पर्श कराये हुए रखें तो उसका भाग्य चक्र बदलने लगता है और शीघ्र ही भाग्योदय होता है।
बालकों में बचपन से ही अच्छे संस्कार मिलें तथा श्रेष्ठ बुद्धि का विकास हो तो बालक जीवन में आगे चलकर विशेष सफलता प्राप्त करता है उसकी स्मरण शक्ति का विकास होना आवश्यक है और इसके लिये वसन्त पंचमी जो कि सरस्वती सिद्धि दिवस है, को निम्न प्रयोग सम्पन्न करना ही है-
वसन्त पंचमी के दिन साधक स्वयं स्नान कर सफेद धोती धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठ जायें और अपने सामने बालकों को बिठा दें, फिर सरस्वती यन्त्र को अपने सामने रख दें तथा उस पर “ह्रीं’’अक्षरलिख दें और प्रत्येक यन्त्र पर अष्टगन्ध लगा कर निम्न मन्त्र की एक माला फेरें-
फिर उस यन्त्र के ऊपर से अष्टगंध उंगली से लेकर बालक के जीभ पर उंगली से या श्लाका से “ह्रींसरस्वत्यैनमः’’ लिख देंऔर वह यन्त्र किसी धागे में पिरोकर बालक के गले में पहना दें, यदि साधक स्वयं के लिये प्रयोग करें तो दर्पण में देखकर अष्टगंध से अपनी जीभ पर उपरोक्त मन्त्र लिख कर यन्त्र गले में धारण कर लें इस प्रकार घर के सभी बालक-बालिकाओं पर यह प्रयोग सम्पन्न करें, पर प्रत्येक के लिये अलग-अलग सरस्वती यन्त्र की आवश्यकता होती हैं।
समय रहते ही यन्त्र आप पत्रिका कार्यालय से सम्पर्क स्थापित कर ले लें, वसन्त पंचमी के पर्व पर इस प्रयोग को आजमा कर देखें, कि वास्तव में ही यह प्रयोग कितना अधिक चमत्कारिक और दिव्य है।
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