भगवान शिव के मुख से कहे गये ये वचन उनके अनादि होने का साक्षात् प्रमाण है। भगवान शिव से अधिक पूज्य कौन अन्य देव या देवी है। औदार्य, सरलता, क्षमा, करूणा और ऐश्वर्य के अधिपति भगवान शिव के समान कोई भी अन्य देवत्व नहीं। योग और भोग को एक साथ धारण करने का सामर्थ्य किसी भी देव में तो नहीं। अर्द्धनारीश्वर स्वरूप ही भगवान शिव का यथार्य परिचय है। विषपान कर लेने की घटना ही भगवान शिव का यथार्य परिचय है। विषपान कर लेने की घटना ही भगवान शिव की जन-जन के मानस में अपनी पहुँच बनाए हुए है और वे ही तो है जो गुरू रूप में इस धरा पर अवतीर्ण होते हैं। गुरू साक्षात् भगवान शिव ही कहे गए हैं।
भगवान शिव के समक्ष तो प्रत्येक दिवस चैतन्य है, प्रत्येक क्षण में आनंदित, प्रत्येक क्षण तरंगित व उल्लसित हैं और इसी से आशुतोष की संज्ञा से विभूषित हैं। वर्ष में कभी भी पूर्ण विधि-विधान से, किसी भी अवसर पर शिव पूजन कर लिया जाये तो उसका फल प्राप्त होता ही है, लेकिन प्रत्येक माह की त्रयोदशी विशेष चैतन्य दिवस होती है, जो शिवरात्रि की संज्ञा से विभूषित है और इन्हीं शिवरात्रियों में से सबसे अधिक पावन शिव रात्रि है ‘‘ महाशिव रात्रि’’ फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी, जो इस वर्ष दिनांक 26 फरवरी 2025 को है। भगवान शिव सदैव आनंद मग्न हैं और शक्ति स्वरूपा मां भगवति पार्वती इस जीवन में आनंद और सरसता की साकार मूर्ति हैं। इनके परस्पर मिलन से सम्पूर्ण प्रकृति इस पावन दिवस पर अपने पूर्ण श्रृंगार के साथ नृत्य कर उठती है और इसी से साधना का यह पावन पर्व दुर्लभ अवसर बन जाता है। सम्पूर्ण रूप से प्रकृति का अणु-अणु चैतन्य होकर साधक को उसका मनोवांछित प्रदान करने के लिये तत्पर हो जाता है। साधक शिव पूजन कर, स्वयं शिव स्वरूप होने की क्रिया में आगे बढ़ जाता है और प्रकृति उसकी अभ्यर्थना करती है उसको उसका मनोवांछित प्रदान कर। सामान्य दिवस नहीं होता यह और नहीं तो सामान्य रात्रि। भगवान शिव तो सर्वथा सरल और भोले है जिनके विषय में कहा गया है कि मिट्टी से बना शिवलिंग, बेल के पत्तों से पूजन और गाल बजा देने से मंगल ध्वनि! इतना ही त्रैलोक्य संपत्ति प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है, किन्तु साधक इस तथ्य की गरिमा जानता है कि किस प्रकार से इस दिवस पर सम्पूर्ण साधना का क्रम अपनाना चाहिये। प्रतीक रूप में भाव का प्रदर्शन तांत्रोक्त माध्यम से करना चाहिये, जिससे चराचर प्रकृति वशीभूत हो सके।
महाशिवरात्रि पूजन इस वर्ष महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025, बुधवार को है इसके साथ ही प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी शिव अविर्भाव दिवस माना जाता है साथ ही सोमवार भी भगवान भोलेनाथ का दिवस है। शिवरात्रि साधना विधि विधान सहित सम्पन्न करने के लिये पंचामृत, नैवेद्य, चंदन, बिल्व पत्र, जल, दुग्ध की व्यवस्था पहले से ही कर लें इसके अतिरिक्त पूर्ण विधि सहित साधना के लिए पंच रत्न स्वरूप मंत्रसिद्ध प्राणप्रतिष्ठा युक्त तांत्रोक्त सामग्री आवश्यक है। जो शिव एवं पार्वती के सायुज्य मंत्रों से अभिमंत्रित हो, एकादश रूद्र मंत्रों से सिद्ध हो। ये पांच सामग्री है-
महाशिव रात्रि की रात्रि को सायं काल के पश्चात् पूरे परिवार सहित अपने सामने एक बड़ी थाली के मध्य स्वस्तिक बना कर उस में ‘सिद्धेश्वर शिवलिंग’ स्थापित कर दें, उसके साथ ही दूसरी थाली में मध्य में ‘पार्वती क्रियमाण’ स्थापित करें, उसके साथ ही ‘आनन्द साफल्य’ रखें और चारों और एकादश रूद्र स्वरूप अर्थात् रूद्र के ग्यारह स्वरूप हेतु ‘एकादश रूद्र रत्न’ स्थापित कर लें इस सारी सामग्री का पंचोपचार पूजन कुंकुंम, केशर, पंचामृत से सम्पन्न करना है। इसके उपरान्त सिद्धि प्रदायक शिवलिंग पूजन करें और भगवान शिवलिंग पर चंदन और केशर से तिलक करें। सर्वप्रथम ध्यान, आह्वान और उसके पश्चात् विधि विधान सहित पूजन का श्रेष्ठ क्रम निम्न प्रकार से है-
शिव परिवार पूजनः अब कुंकुंम, अक्षत, पुष्प से भगवान गणपति, कार्तिकेय एवं शिव परिवार के अन्य सदस्य नन्दी, भैरव सर्प, दण्ड, महाकाल, एकादश रूद्र का मानसिक पूजन निम्न मंत्र बोल कर करें।
ऊँ गणपतये नमः, ऊँ कार्तिकेयाय नमः, ऊँ पुष्पदन्ताय नमः, ऊँ कपर्दिने नमः, ऊँ भैरवाय नमः, ऊँ शूलपाणये नमः, ऊँ चण्डेशाय नमः। ऊँ दण्डपाणये नमः, ऊँ नन्दीश्वराय नमः, ऊँ महाकालाय नमः। सर्वान् गणाधिपान् पूजयामि, सर्वोपचारार्थै गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
ऊँ अघोराय नमः, ऊँ पशुपतये नमः, ऊँ शर्वाय नमः, ऊँ विरूपाक्षाय नमः, ऊँ विश्वरूपिणे नमः, ऊँ त्र्यम्बकाय नमः, ऊँ कपर्दिने नमः, ऊँ भैरवाय नमः, ऊँ शूलपाणये नमः, ऊँ ईशानाय नमः, एकादरशद्रान्, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
पहले पंचामृत व फिर जल से स्नान करावें।
अब मुख्य अभिषेक प्रारम्भ होता है। इस अभिषेक में जिस बड़ी थाली में शिवलिंग वेदी पर स्थापित है उस पर रूद्राभिषेक सम्पन्न करें। जो साधक रूद्राष्टध्यायी का पाठ कर सकते है वे पूरे आठ अध्याय का पाठ करते हुए निरन्तर दुग्ध मिश्रित जल का अभिषेक करते रहे और प्रत्येक अध्याय के पश्चात् ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र बोल कर बिल्वपत्र शिवलिंग पर अर्पित करें।
बिल्वपत्र : बिल्वपत्र केवल शिवलिंग पर ही अर्पित करना है यह त्रिदल वाला बिना कटा-फटा होना चाहिए। इसके ऊपर चन्दन लगाकर इसे उल्टा कर शिवलिंग पर रखें।
जो साधक पूर्ण रूद्राभिषेक नहीं कर सकते है वे रूद्राक्ष माला से निम्न चार मंत्रों को ढ़ाई घड़ी अर्थात् एक घंटे तक निरन्तर जल धारा से अभिषेक करते हुए उच्च स्वर में उच्चारण करें। शिव साधना के ये चारो मंत्र शिव, पार्वती, एकादश रूद्र, गणपति, कार्तिकेय के बीज मंत्रों से युक्त है और इसमें महामृत्युजंय मंत्र का सम्पुट है साथ ही कार्यसिद्धि की प्रार्थना भी है।
अब भगवान शिव के विग्रह शिवलिंग एवं पार्वती क्रियमाण को शुद्ध जल से धोकर दूसरी थाली में रखें। अभिषेक के समय जो दुग्ध मिश्रित जल बिल्वपत्र इत्यादि है उन्हें अलग रखें रहने दें। इस जल का स्वयं तथा परिवार के अन्य सदस्य थोड़ा-थोड़ा आचमन करें और शेष जल दूसरे दिन प्रातः पीपल वृक्ष पर चढ़ा दें।
सब सामग्री को दूसरी थाली में स्वस्तिक बना कर सभी सामग्री एक साथ स्थापित कर दें।
अब निम्न मंत्रों से शिव स्तुति एवं समर्पण भाव जय-जयकार करें-
जै शिव ऊँ कारा।, मन भज शिव ऊँ कारा।, मन रट शिव ऊँ कारा।, हो शिव भूरी जटा वाला।, हो शिव दीर्घ जटा वाला, हो शिव तीन नेत्र वाला।, हो शिव ऊपर गंगधारा।, हो शिव बरसत जलधारा।, हो शिव तीव्र नेत्र ज्वाला।, हो शिव गल विच मुण्डमाला।, हो शिव कम्बु ग्रीव वाला।, हो शिव भस्मी अंग वाला।, हो शिव फणिधर फण धारा।, हो शिव वृषभ स्कन्ध वाला।, हो शिव ओढ़त मृग छाला।, हो शिव बैल चढण वाला।, हो शिव पारबती प्यारा, हो शिव पीवत भंग प्याला।, हो शिव मस्त रहन वाला।, हो शिव बरसो जलधारा।, हो शिव काटो जम फासा।, हो शिव मेटो जम त्रासा।, हो शिव रहते मतवाला।, हो शिव ऊपर जलधारा।, हो शिव ईष्वर ऊँ ईष्वर ऊँ कारा।, हो शिव बम बम बम भोला।, ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, भोले नाथ महादेव अर्द्धांगी धारा।, ऊँ हर हर हर महादेव……..
इसके बाद शंख में या पात्र में जल लेकर घुमाते हुए जल छोड़े और निम्न मंत्र पढ़े-
ऊँ द्यो (हू) शांतिरन्तरिक्षं (गूं) शांति (ही) पृथिवी शांति राप (ह) शांतिरोषधय (ह) शांति (हि) वनस्पतय (ह) शांतिर्विश्वेदेवा (ह) शांति (हि) ब्रह्मशांति (हि) सर्व (गूं) शांति (हि) शांति रे वशान्ति (हि) सामाशान्तिरेधि।।
इस पूजन क्रम के पश्चात् पूर्ण आदर भाव सहित सिद्धि प्रदायक शिवलिंग एवं पार्वती क्रियमाण को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें। आनन्द साफल्य अपने एवं परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर ग्यारह बार घुमाकर एक दिन अपने पूजा स्थान में रखें तथा दूसरे दिन किसी शिव मंदिर में अर्पित कर दें। एकादश रूद्र को पीले कपड़े में कुंकुंम, अक्षत सहित बांध कर गहने, रूपये, पैसे इत्यादि जहां रखने है वहां रख दें।
इस प्रकार महाशिवरात्रि का यह पूजन एक संक्षिप्त पूजन है और यह पूजन प्रत्येक गृहस्थ को स्त्री, पुरूष इत्यादि को सम्पन्न करना ही चाहिये। भगवान शिव ही आयु, वृद्धि, यश, बल, गृह सुख, भक्ति एवं मुक्ति प्रदान करने वाला देव है जहां भगवान शिवअपने पूरे परिवार सहित विराजमान है वहां कोई अनिष्ट हो ही नहीं सकता क्योंकि शिव आरती में ही स्पष्ट है कि सुखकर्ता दुखहर्ता सुख में शिव रहता, अतः हर स्थिति में शिव पूजन अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिये और यदि संभव हो तो प्रत्येक मास के प्रदोष के दिन इस विधान से शिव पूजन करना चाहिये।
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