तंत्र के सम्बन्ध में जितनी विरूद्ध धारणाएं है, और इसी कारण तंत्र को मैली विद्या पीड़ा पहुचाने वाली क्रिया कहा गया है, वह सब इस कौलाचार तंत्र के सम्बन्ध में है, भैरवाष्टक तंत्र का वास्तविक स्वरूप तो निराला है, क्योंकि इसमें भैरव के माध्यम से भूत, पिशाच, प्रेत की सिद्धि कर अदृश्य शक्तियों से बुराई पर विजय पाने की तंत्र प्रक्रिया है।
भैरवाष्टक तंत्र के आठ स्वरूप-धारणाएं है जो (i)असिताड्ंग तंत्र (ii) रूरू तंत्र (iii) चण्ड तंत्र (iv)क्रोध तंत्र (v) उन्मत तंत्र, (vi) कपाली तंत्र, (vii) भीषण तंत्र, (viii) संहार तंत्र है, प्रस्तुत लेख साधना भैरवाष्टक तंत्र के उन्मत स्वरूप की साधना है जो तीव्र तत्काल फल देने वाली है।
तंत्र की हजारों शाखाओं का स्वरूप अलग-अलग है? साधना क्रियाएं एक दूसरे से विपरीत है, लेकिन दुर्भाग्य है कि तंत्र का शुद्ध रूप से प्रचार प्रस्तुतीकरण बहुत कम हुआ है, इस कारण सामान्य जन में इसके प्रति फैली धारणाएं गन्दे रूप से ही विकसित हुई है, भैरवाष्टक तंत्र श्मशान साधनाओं का स्वरूप है, जहां किसी भी तंत्र क्रिया से किसी भी अन्य सात्विक अनुष्ठान से कार्य न पूर्ण हो तो ‘‘भैरवाष्टक यंत्र’’ ही एक मात्र उपाय बचता है, यह वह तंन्त्रास्य है जिसका वार कभी खाली नहीं जाता है, कहावत है कि लोहे को लोहा काटता है, उसी प्रकार प्रेत बाधा जैसे तीव्र प्रयोगों को शान्त करने हेतु, प्रबल शत्रु के नाश हेतु इस उन्मत्त तीव्र भैरव तंत्र का सहारा लिया जाता है।
तीव्र वामार्गी, चण्ड, क्रोध, रूरू, कौल के आदिदेव ‘क्रोध भैरव’ है जो व्यक्ति वाम तंत्र का प्रयोग करता है, उसे भैरव के इस स्वरूप की नित्य साधना अवश्य करनी चाहिये।
क्रोध भैरव के क्रोध के सम्बन्ध में लिखा है कि इनका स्वरूप वियोग वक्त्र, वज्रपाणी, सुरान्तक, क्रोध, अधिपति, आकाश, रूपी मुख वाले, महाकाल, प्रलय अग्नि की प्रभा के समान दैदीप्यमान, अभेद-भेद कारक, रौद्र रूपी देवों और सिद्धों दोनों द्वारा नमस्कृत, त्रिलोक के अधिपति का स्वरूप है जिनके अधीन सारे भूत-प्रेत, पिशाच, भैरव-भैरवियां है उन क्रोध भैरव को, उन्मत भैरव को बार-बार नमस्कार है।
वाम तंत्र की साधनाओं का स्वरूप निराला ही है, इसमें मूल रूप से भूत-सिद्धि, वशीकरण, सर्व स्तम्भन, मारण की साधनाएं है इसके अलावा वाक् सिद्धि काव्य सिद्धि का विधान भी मुख्य रूप से लिखा गया है, शरीर सम्बन्धी किसी भी प्रकार के दोष दूर करने हेतु भैरव तंत्र से श्रेष्ठ कोई उपाय नहीं है।
अब प्रश्न उठता है कि भैरव तंत्र का उपयोग कब किया जाय, और किस प्रकार किया जाय, जिसमें तंत्र का प्रयोग करने वाले साधक को स्वयं भी कोई हानि नहीं पहुँचे और सकल मनोरथ कार्य भी सिद्ध हो जाय, इस हेतु शास्त्रोक्त कथन है कि-
अर्थात् किसी वृक्ष के नीचे, शिवालय में, वन में, नदी के संगम पर अथवा श्मशान में बैठ कर उपासना करने से भैरव और भैरव के सहयोगी भूत इत्यादि की सिद्धि प्राप्त होती है, और मनुष्य को इष्टफल मिलता है।
जब साधक के जीवन को ही शत्रु द्वारा संकट उत्पन्न हो जाय अथवा शत्रु ने उसे द्वेष भाव से पीड़ा अथवा हानि पहुँचाई हो, धन हरण कर लिया हो, विरूद्ध प्रयोग किया हो, तो तीव्र भैरव तंत्र का प्रयोग करना चाहिये।
उन्मत भैरव साधना में जब भैरव पूजन किया जाता है तो उनके साथ आठ उन्मत भैरवियों का पूजन अनिवार्य है, ये आठ उन्मत्त भैरवियां है-
केवल कृष्ण पक्ष में ही तीव्र भैरव तंत्र से सम्बन्धित साधनाएं सम्पन्न की जाती है।
उन्मत भैरव की साधना का क्रम सभी साधनाओं में एक है, लेकिन अलग-अलग कार्यो हेतु अलग-अलग प्रकार के मंत्र का विधान दिया गया है, इसे ध्यान में रखना आवश्यक है।
भैरव साधना में भूत-प्रेत, पिशाच इत्यादि शक्तियों का आह्वान किया जाता है और भैरव द्वारा इन शक्तियों से ही इच्छित कार्य सम्पन्न कराया जाता है, इस कारण साधक को कई बार बड़े ही विचित्र अनुभव होते है, साधना करते समय ऐसा लग सकता है, मानो पृथ्वी घूम रही है, पंखों की फड़फड़ाहट, विचित्र ध्वनियाँ, सामग्री का इधर-उधर होना, दीपक की लौ तीव्र हो जाना, मुर्दे की गन्ध इत्यादि अनुभव हो सकते हैं लेकिन जिसे सिद्धि प्राप्त करनी है और जो दृढ़ संकल्प से साधना करना चाहता हो उसे भैरव तंत्र का प्रयोग करने से पहले पूर्ण विधि-विधान सहित गुरू-पूजन अवश्य ही सम्पन्न कर लेना चाहिये, गुरू साक्षात शिव स्वरूप होते हैं और जहां गुरू पूजन होता है, वहां साधना के मार्ग की आपदाएं अपने आप शांत हो जाती है।
जैसा कि ऊपर लिखा है, यह साधना एकान्त में सम्पन्न करनी चाहिये और साधना के दौरान बार-बार विघ्न न पड़े और न ही किसी वस्तु के लिए उठना पड़े तो साधक को पूर्ण सामग्री की व्यवस्था पहले से कर लेनी चाहिये, इस हेतु ‘तंत्र कार्य कालवक्त्र उन्मत्त भैरव महायंत्र’, अष्ट भैरवी चक्र’ आठ मिट्टी के दीपक, तेल, फल, आठ सुपारी, तिल, सिन्दूर, तेल, लाल वस्त्र, काला वस्त्र की व्यवस्था आवश्यक है।
जिस एकान्त स्थान पर प्रयोग कर रहे है, वहां काला वस्त्र बिछाएं और उस पर दो तिल की ढेरियां बना कर एक पर ‘उन्मत भैरव महायंत्र’ और दूसरी ढेरी पर ‘अष्ट भैरवी चक्र’ स्थापित करें उसके चारों और तिल से ही एक गोल घेरा बनायें, अब इस गोल घेरे के भीतर कुछ भी सामग्री नहीं रखनी है, इसके बाहर आठ दीपक चारों ओर जला दें, सिन्दूर से भैरव की पूजा करें-
हे अमृत सम्भूते! मुझे बल वीर्य और दीर्घ आयु प्रदान करें, मेरी पाप राशि को ध्वस्त करें, मैं भैरव साधक आप को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
तत्पश्चात् तेल का अर्पण भैरव यंत्र पर करना चाहिये, फिर 21 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
अब साधक को धूप लोबान प्रज्वलित करना चाहिये।
अष्ट भैरवी पूजन में अष्ट भैरवी चक्र पर ईत्र, केसर से तिलक कर दोनों हाथ जोड़ कर निम्न अष्ट भैरवियों का आह्वान करें-
इस प्रकार पूजन कर वीर मुद्रा में बैठ कर साधक एक पुष्प माला अर्पित कर अपनी साधना प्रारम्भ करें, अब अलग-अलग कार्यो हेतु अलग-अलग मंत्रों का जो विधान और जप संख्या है, वह स्पष्ट की जा रही है-
इच्छित व्यक्ति का नाम लेकर अपने नाम के साथ उच्चारण कर इस मंत्र की 11 माला जप करना चाहिये।
पांच हजार मंत्र जप भैरव माला से करने से मनुष्य तो क्या देवता भी साधक की ओर आकर्षित होते हैं।
डामर तंत्र के अनुसार-पुष्प नक्षत्र में श्वेतार्क की जड़ उखाड़कर दाहिने बाहु में बांधने से अत्यंत दुर्भाग्यशाली व्यक्ति भी पूर्ण सौभाग्य को प्राप्त करता है।
भैरव पूजन कर अपने सामने एक सरसों की ढेरी बना कर इस मंत्र से अभिमन्त्रित कर बाधा ग्रस्त, रोग ग्रस्त, व्यक्ति पर मंत्रोच्चार करते हुए सरसों का प्रहार करें तो सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं।
भैरव तंत्र का विधान लम्बा-चौड़ा है जीवन में हजारों बाधाएं है तो उनकी शांति के लिये हजारों प्रयोग है, भैरव तंत्र में उपरोक्त विवरण के अलावा विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, औषधियों श्मशान प्रयोगो का भी विशद विवरण आता है, गुरू कृपा से आगे के अंको में इसकी चर्चा अवश्य करेंगे।
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