शतावरी एक प्राचीन औषधीय पौधा है जिसका वैज्ञानिक नाम Asparagus Racemosus है। यह आयुर्वेद चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है और लगभग 100 बीमारियों के इलाज के लिए कारगर माना जाता है। यह पौधा भारत, नेपाल, श्रीलंका और हिमालय के कुछ क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए प्रभावी माना गया है।
शतावरी बेल या झाड़ के रूप वाली शतावरी एक जड़ी-बूटी है। इसकी लता फैलने वाली, और झाड़ीदार होती है। एक-एक बेल के नीचे कम से कम 100, इससे अधिक जड़ें होती हैं। ये जड़ें लगभग 30-100 सेमी लम्बी, एवं 1-2 सेमी मोटी होती हैं। जड़ों के दोनों सिरें नुकीली होती हैं।
इन जड़ों के ऊपर भूरे रंग का, पतला छिलका रहता है। इस छिलके को निकाल देने से अन्दर दूध के समान सफेद जड़ें निकलती हैं। इन जड़ों के बीच में कड़ा रेशा होता है, जो गीली एवं सूखी अवस्था में ही निकाला जा सकता है।
इसका प्रयोग अनेक बीमारियों के इलाज में किया जाता है। शतावरी दो प्रकार की होती हैं, जो ये हैंः-
विरलकन्द शतावर(Asparagus filicinus &Ham ex D-Don)
इसके कन्द छोटे, मांसल फूले हुए तथा गुच्छों में लगे हुए होते हैं। इसके कन्द का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है।
कुन्तपत्रा शतावर (Asparagus gonoclados Baker)
यह झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसके कन्द छोटे और मोटे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं, और फल गोल होते हैं। कच्ची अवस्था में फल हरे रंग के, और पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। इसके कंद शतावर से छोटे होते हैं।
बहुत सालों से शतावरी का भिन्न-भिन्न तरीके से इस्तेमाल होता आ रहा है। शतावरी के फायदे लेने के लिए आपको शतावरी के आयुर्वेदीय गुण-कर्म, उपयोग के तरीके, उपयोग की मात्रा, एवं विधियों की जानकारी होनी जरूरी है।
अनिद्रा रोग (नींद ना आने की परेशानी) में शतावरी का इस्तेमाल :
कई लोगों को नींद ना आने की परेशानी होती है। ऐसे लोग 2-4 ग्राम शतावरी चूर्ण को दूध में पका लें। इसमें घी मिलाकर खाने से नींद ना आने की परेशानी खत्म होती है। कहने का मतलब यह है कि शतावर चूर्ण अनिद्रा की बीमारी में बहुत ही लाभकारी हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद
गर्भवती महिलाओं के लिए शतावरी के फायदे बहुत ही लाभकारी सिद्ध होते हैं। गर्भवती महिलाएं शतावरी, सोंठ, अश्वगंधा, मुलैठी तथा भृंगराज को समान मात्रा में लें और इनका चूर्ण बना लें। इसे 1-2 ग्राम की मात्रा में लेकर बकरी के दूध के साथ पिएं। इससे गर्भस्थ शिशु स्वस्थ रहता है।
शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए जो लोग शारीरिक कमजोरी, या शरीर में ताकत की कमी महसूस कर रहे हैं। वे शतावरी को घी में पकाकर मालिश करें, इससे शरीर की कमजोरी दूर होती है। सामान्य कमजोरी दूर करने में शतावरी के फायदे बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं।
सर्दी-जुकाम में शतावरी का उपयोग
शतावरी का सेवन सर्दी-जुकाम में भी फायदेमंद होता है। आप शतावरी की जड़ का काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिली मात्रा में पीने से आराम मिलता है।
गला बैठने (आवाज बैठना) पर शतावरी से फायदा
अधिक जोर से बोलने, या चिल्लाने पर गला बैठना (आवाज का बैठना) आम बात है। ऐसी परेशानी में शतावर, खिरैटी (बला), और चीनी को मधु के साथ चाटने से लाभ होता है।
सूखी खांसी के उपचार के लिए
सूखी खांसी से परेशान रहते हैं, तो 10 ग्राम शतावरी, 10 ग्राम अडूसे के पत्ते, और 10 ग्राम मिश्री को 150 मिली पानी के साथ उबाल लें। इसे दिन में 3 बार पीने से सूखी खांसी खत्म हो जाती है।
कफ होने पर शतावरी, एवं नागबला का काढ़ा, और चूर्ण को घी में पका लें। इसका सेवन करने से कफ विकार में लाभ होता है।
सांसों के रोग में लाभ
शतावरी पेस्ट एक भाग, घी एक भाग, तथा दूध चार भाग लें। इन्हें घी में पकाएं। इसे 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इससे सांसों से संबंधित रोग, रक्त से संबंधित बीमारी, सीने में जलन, वात और पित्त विकार, और बेहोशी की परेशानी से आराम मिलता है।
अपच की समस्या में फायदा
खाना ठीक से नहीं पच रहा है, तो शतावरी का उपयोग करना लाभ पहुँचाता है। 5 मिली शतावर के जड़ के रस को मधु, और दूध के साथ मिला लें। इसे पिलाने से अपच जैसी परेशानी से शान्ति मिलती है।
पेट दर्द में शतावरी से लाभ
पीत्त दोष के कारण होने वाले पेट के दर्द में भी शतावरी का फायदा लिया जा सकता है। रोज सुबह 10 मिली शतावरी के रस में 10-12 ग्राम मधु मिलाकर पीने से लाभ होता है।
नाक के रोग में शतावरी का प्रयोग फायदेमंद
नाक की बीमारियों में 5 ग्राम शतावरी चूर्ण को 100 मिली दूध में पका लें। इसे छानकर पीने से नाक के रोग खत्म हो जाते हैं। शतावर चूर्ण के फायदे नाक संबंधी रोगों के उपचार के लिए बहुत ही लाभकारी होते हैं।
शतावरी का उपयोग घाव सुखाने के लिए
शतावरी के 20 ग्राम पत्तों के चूर्ण बनाकर दोगुने घी में तल लें। अब इस शतावरी चूर्ण को अच्छी तरह पीस कर घाव पर लगाएं। इससे पुराना घाव भी ठीक हो जाता है।
आंख के रोग में
5 ग्राम शतावरी जड़ को 100-200 मिली दूध में पका लें। इसे छानकर पीने से आंख के रोगों में लाभ होता है।
पुराना घी, त्रिफला, शतावरी, परवल, मूंग, आंवला, तथा जौ का रोज सेवन करें। इससे आंखों के रोग में लाभ होता है।
शतावरी के इस्तेमाल से रतौंधी में लाभ
शतावरी के इस्तेमाल से रतौंधी में भी लाभ होता है। घी में शतावरी के मुलायम पत्तों को भूनकर सेवन करें।
शतावरी का प्रयोग दस्त रोकने के लिए
लोग दस्त से परेशान रहते हैं, तो 5 ग्राम शतावरी व घी का सेवन करें। इससे दस्त पर रोक लगती है।
बुखार में शतावरी से लाभ
शतावर और गिलोय के बराबर-बराबर भाग के 10 मिली रस में थोड़ा गुड़ मिलाकर पिएं। इससे बुखार में लाभ होता है। 20-40 मिली काढ़ा में 2 चम्मच मधु मिलाकर पीने से बुखार में लाभ होता है।
पुरानी पथरी के रोग में इस्तेमाल
पथरी की बीमारी से परेशान मरीज 20-30 मिली शतावरी के जड़ से बने रस में बराबर मात्रा में गाय के दूध को मिलाकर पिएं। इससे पुरानी पथरी भी जल्दी गल जाती है।
गर्मी से लड़ता है और शीतलता बनाए रखता है
गर्मियों के मौसम में शतावरी का सेवन आपके लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। दरअसल यह गर्मी से लड़ता है और शरीर को शीतल रखता है। शतावरी को त्रिदोष शामक माना जाता है यानी यह वात, पित्त, कफ को संतुलित करता है जिससे शरीर ठंडा और संतुलित होता है। आयुर्वेद कहता है कि अगर आपके शरीर में गर्मी ज्यादा है और पित्त दोष खराब है तो कई परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं।
शतावरी के उपयोगी भाग
जड़, जड़ से तैयार काढ़ा, पत्ते, पेस्ट, चूर्ण
शतावरी का इस्तेमाल कैसे करें?
आप शतावरी का उपयोग इस तरह से कर सकते हैंः-
रस- 10-20 मिली, काढ़ा- 50-100 मिली, चूर्ण – 3-6 ग्राम
निष्कर्ष:
शतावरी के फायदे में शामिल है पीएमएस के लक्षणों को कम करता है, पुरुषों और महिलाओं में इनफर्टिलिटी और यौन इच्छा में कमी दूर करता है, हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, पाचन तंत्र मजबूत करता है, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या दूर करता है
लेकिन ध्यान दें कि शतावरी के फायदे और नुकसान दोनों हैं और इसलिए इसका सेवन उचित मात्रा में एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक के सलाह के उपरांत ही करना चाहिए। आपको इसे दूध के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए। इसके अलावा, शतावरी और अश्वगंधा को एक साथ मिलाकर सेवन करने से दोगुने फायदे प्राप्त होते हैं।
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