हममें से अधिकांश पत्रिका पाठक पारिवारिक सदस्य अपने परिवार का संचालन करते है, इस में आर्थिक स्थिति स्वामी की पत्नी की या पुत्र वधू को हो सकती है पर इस बात से तो इन्कार नहीं किया जा सकता कि आप में से प्रत्येक सदस्य सुखी और सन्तुष्ट परिवार चाहता है।
प्रसिद्ध लेखक ने कहा है कि दिन भर के विविध चक्रों और परेशानियों से थक कर जब मैं घर लौटता हूँ तो मुझे एक सकून मिलता है, आनन्द की अनुभूति होती है, और मेरे पूरे दिन भर की थकावट समाप्त हो जाती है, मैं पुन: तरोताजा हो जाता हूँ और इस दुनिया से संघर्ष करने की हिम्मत वापिस प्राप्त कर दूसरे दिन वापिस कर्म क्षेत्र में उतर जाता हूँ।
लेखक के इन शब्दों के विपरीत जब हम अपने घर लौटते हैं तो झगड़ालू पत्नी, तनाव से भरे हुए माता-पिता, परेशान और चिन्तित पुत्र और भुनभुनाती हुई बेटे की बहू को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे किसी कैद खाने में आ गये हो और हम जल्दी-जल्दी खाना ठूंस कर उतने ही बोझिल मन से सो जाते हैं और हमारा सारा चेहरा तनाव से ग्रस्त बना रहता है।
क्या इस प्रकार का परिवार सुखदायक है, क्या इस प्रकार के परिवार में रहने की कल्पना की जा सकती है, क्या इस प्रकार के परिवार का परिवर्तन कर सुखी और सफल मधुर एवं आनन्द युक्त परिवार बनाया जा सकता है?
यह सब कुछ संभव है, आवश्यकता है सही ढंग से कार्य करने की और नवीन तथ्यों को ध्यान में रख कर परिवार के संचालन करने की, यह बात भी निश्चित है कि परिवार के किसी भी सदस्य का तनाव पूरे परिवार को बोझिल बना देता है, ऐसे व्यक्ति के मन में चिड़चिड़ाहट पैदा हो जाती है और इसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है, उसकी कार्य क्षमता, आफिस के कार्य और दैनिक जीवन के निर्णयों पर भी पड़ता है, उसकी कार्य करने की क्षमता कमजोर हो जाती है, उसके मन में आगे बढ़ने की लालसा समाप्त हो जाती है।
अब लोगों का ध्यान सुखी परिवार को बनाने की ओर भी जाने लगा है, अब उनको अहसास होने लगा है कि धन एकत्र करना ही जीवन का लक्ष्य नहीं होता अपितु सुखी और प्रफुल्ल वातावरण से भरे परिवार की भी जीवन में नितान्त आवश्यकता है, आनन्दयुक्त परिवार से सदस्यों की आयु बढ़ती है, घर में प्रसन्नता का वातावरण बना रहता है और सभी के हृदय में उमंग, उत्साह, जोश और उन्नति की ओर बढ़ने की भावना बनी रहती है।
और ऐसे परिवार को बनाने के लिए तथा घर को आनन्दप्रद सुखदायक, मधुर और प्रफुल्ल बनाने के मात्र छ: सूत्र है, आप इनका प्रयोग कीजिये और अनुभव करेंगे कि कुछ ही दिनों में आपने परिवार का कायाकल्प कर दिया है।
तनाव का मुख्य कारण अपनी अधिकार प्रवृति को थोपना है, घर का मुखिया यह समझता है कि मैं घर में बड़ा हूँ हुक्म मेरा चलेगा, परन्तु यह अनुचित है, कई बार ऐसे आदेशों से दूसरों के मन पर विपरीत प्रक्रिया होने लगती है, और उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे उनके अधिकारों का हनन हो रहा है।
छोटी-छोटी बातों या कार्यों में अपनी टांग मत अड़ाइये और न आदेश दीजिये, बेटे या बहू को ऐसे आदेश मत दीजिये कि किसके यहां भोजन के लिए जाना है, और कहा नहीं जाना है, या कहा पर क्या नहीं करना है, इसके लिए उनको स्वयं निर्णय लेने दीजिये, यदि वे आपसे सलाह मांगे तो अवश्य ही उन्हें सलाह दीजिये परन्तु जबरदस्ती से थोपी गई बात का प्रभाव विपरीत ही होता है।
एक सूत्र का हमेशा ध्यान रखिये कि परिवार के प्रत्येक सदस्य का अपना महत्व है, और उस महत्व को बनाये रखिये उन्हें निर्णय लेने दीजिये, यदि उनके कार्यों से परिवार के अन्य सदस्यों पर विपरीत असर पड़ रहा हो तो अवश्य रोकिये अन्यथा छोटी छोटी बातो पर अधिकार जताना या हुक्म देना अथवा सबके सामने बुरा भला कहना परिवार की सुख शांति को मिटाता ही है।
लड़ाई झगड़े का मुख्य कारण पैसा है, और इसी वजह से काफी मतभेद, लड़ाईयां और तनाव हो जाता है, यदि आपका पुत्र कमा रहा है और संयुक्त परिवार है तो उससे सारा पैसा मत छीन लीजिये, इससे आपके पुत्र और पुत्र वधु के मन में कुण्ठा उत्पन्न हो जायेगी। उनके मन में यह भावना आ जायेगी कि मैं कमाता तो हूँ, पर एक प्रकार से मेरा शोषण हो रहा है, और ऐसी विचार धारा तनाव को ही जन्म देती है।
इसलिए उचित तो यह है कि परिवार के सारे सदस्य मिल कर बातचीत के द्वारा यह स्पष्ट कर ले कि जो पुत्र कमा रहा है, उसकी कमाई का कितना हिस्सा उसे संयुक्त परिवार में देना चाहिए और कितना हिस्सा उसको अपने स्वयं के लिए या अपनी पत्नी के लिए खर्च करना चाहिए, साथ ही इस बात को भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि जो पुत्र अभी तक कमा नहीं रहे हैं, उन्हें हाथ खर्च कितना दिया जाना चाहिए, जिससे कि उन्हें अपने पैसे का बजट ज्ञात रहेगा और इसी अनुपात में वे खर्च करेंगे।
पैसे के बारे में सारी बातचीत स्पष्ट होनी चाहिए और घर में क्या वस्तु खरीदनी है और कब खरीदनी है, इसका निर्णय केवल घर के मुखिया के पास ही रहना चाहिये, ऐसी स्थिति होने पर तनाव का कोई कारण नहीं रहेगा और प्रत्येक को अपनी मर्यादा का साथ ही अपने बजट का भी पूर्ण ज्ञान रहेगा, और यह स्थिति परिवार की प्रसन्नता के लिए आवश्यक है।
भारत वर्ष में अधिकतर संयुक्त परिवार प्रथा है और एक ही परिवार में माता-पिता, पुत्र, पुत्र वधु, साथ साथ रहते है, ऐसी स्थिति में यह अत्यन्त आवश्यक है कि सारी केन्द्रीय सत्ता घर के मुखिया के पास रहनी चाहिए, परिवार के सदस्य जो कमा कर लाते हैं, उनको किस प्रकार से एकत्र करना है, उसे कहां पर व्यय करना है, और किस प्रकार से व्यय करना है, इसका निर्णय परिवार के मुखिया के पास रहना चाहिए और उसके आदेश का पालन प्रत्येक सदस्य को करना चाहिए।
कभी कभी परिवार के मुखिया और उसकी पत्नी के बीच किसी बात पर या लेन देन के मामले में मतभेद हो सकते हैं, पर ये मतभेद तनाव के कारण नहीं बनने चाहिए, इसके लिए परस्पर बैठ कर बात को सुलझा लेना चाहिये। इससे परिवार में सुख शांति बनी रहती है, यदि घर के मुखिया और उसकी पत्नी अर्थात माता-पिता परस्पर झगड़ते है, तो इसका प्रभाव बालकों पर सर्वथा विपरीत पड़ता है और उनके मन में आदर की भावना कम हो जाती है।
इसी प्रकार समाज के अन्य सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, कहां जाना चाहिए और कहां नहीं जाना चाहिए, आदि निर्णय परिवार के मुखिया को ही करने चाहिए और अन्य सदस्यों को इसका प्रसन्नता के साथ पालन करना चाहिए।
आप केवल अपना सुख-दुख या अपनी ही परेशानी को महत्व मत दीजिये, इसकी बजाय दूसरे की अनुभूति को भी महत्व दीजिये, यदि आपके पति आफिस से लड़ झगड़ कर घर आते है, और वह तनाव से भरे होते है, तो ऐसी स्थिति में लड़ना झगड़ना या जली कटी सुनाना उचित नहीं है, इसकी बजाय जब उनका मूड ठीक हो तो उस तनाव का कारण पूछे और कारण ज्ञात हो जाय तो उसे सामान्य बनाने की ओर प्रेरित करें, ऐसा होने पर यह अपने आप में हल्का अनुभव करेंगे और उसे अहसास होगा कि परिवार में कोई है, जो मेरी भावनाओं को महत्व देता है, मेरे सुख-दुख में सहयोगी है।
ऐसी स्थिति में एक ही सूत्र को ध्यान में रखना चाहिए कि यदि घर के किसी सदस्य को कोई तनाव है, और उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ गया है तो उसे सीधा पूछने की अपेक्षा तनाव का कारण ज्ञात करने की कोशिश करनी चाहिए और तनाव को दूर करने के लिए सुझाव देना चाहिए।
यदि आपके मन में कोई तनाव या घुटन है, तो उसे अन्दर की अन्दर दबोच कर मत रखिये, अन्दर ही अन्दर मत घुटिये, इसकी बजाय अपने तनाव को किसी सदस्य के सामने व्यक्त कर दीजिये, इससे आपका जी हल्का हो जायगा और उस तनाव को दूर करने का उपाय ढूंढेगे तो समस्या का समापन जल्दी हो जायेगा।
जब घर है और गृहस्थ है, तो जिम्मेवारियां भी है, पर हम में से अधिकांश यह गलती कर बैठते हैं, कि घर की सारी जिम्मेवारियों को हम अकेले अपने ऊपर ही ओढ़ लेते है, यह उचित नहीं है, इससे आप तो घर के उत्तरदायित्वों से बहुत अधिक बंध जायेंगे, और घर के अन्य सदस्यों के पास न तो कोई जिम्मेवारी होगी और न कोई उत्तरदायित्व ही।
ऐसी स्थिति में घर के प्रति या परिवार के प्रति उनके मन में कोई अपनत्व नहीं रहेगा और एक मशीन की तरह घर के काम करेंगे, इससे न तो पारिवारिक प्रसन्नता का वातावरण बनेगा और न दूसरे अपना दायित्व ही अनुभव करेंगे।
इसलिए सभी वयस्क बच्चों पर उनके अनुसार उत्तरदायित्व डालिए, किसी को लेन-देन की जिम्मेवारी दीजिये तो किसी को भोजन आदि की व्यवस्था का उत्तरदायित्व वहन करने दीजिये, इस प्रकार यदि आप सभी को उनके अनुसार जिम्मेवारी सौपेंगे तो वे अपने आप में गौरवान्वित अनुभव करेंगे।
छोटे-छोटे निर्णय उन्हें स्वयं लेने दीजिये, उनसे सम्बन्धित निर्णय भी उनको ही लेने दीजिये, उनको अहसास होना चाहिए कि वे अब वयस्क हो गये हैं, और निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं, उनको यह भी अहसास होना चाहिए कि यदि वे निर्णय लेते है, तो सही निर्णय ले सकते हैं, और उन निर्णय को सम्पन्न कर सकते हैं, इससे उनके मन में आत्म विश्वास बढेगा, छोटी-छोटी समस्याओं से आप बचे रहेंगे और परिवार का वातावरण मधुर रहेगा।
बड़ो के मतभेद में छोटों को मत डालिये
घर के आप मुखिया है और आप के ऊपर काफी जिम्मेवारियां है, घर के अलावा भी बाहर की जिम्मेवारियों और परेशानियों से भी आपको जूझना पड़ता है, और इसके साथ आपको अपना घर भी चलाना होता है, ऐसी स्थिति में पति-पत्नी में मतभेद हो सकता है, कभी-कभी ये मत भेद उग्र भी हो सकते है।
ऐसी स्थिति में आप बच्चों को अपनी लड़ाई झगड़े से दूर ही रखियें, उनको अहसास मत होने दीजिये कि आप परस्पर लड़ रहे हैं, और भूलकर भी अपनी लड़ाई में बच्चों की निर्णयाधीश मत बनने दीजिये ऐसा होने पर आपके प्रति जो सम्मान उनकी आंखों में हैं, वह समाप्त हो जायेगा, अपनी लड़ाई को खुद ही समाप्त कीजिये।
उपरोक्त छ: सूत्र सुखी परिवार के पूर्ण सूत्र है, और यदि इनका पालन किया जाय तो निश्चय ही स्वर्ग के समान परिवार बना रह सकता है।
सस्नेह आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
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