ऋग्वेद में लक्ष्मी का वर्णन करते हुए उसे ‘चंचला’ कहा गया है जो कि एक स्थान पर स्थित नहीं रहती, इसी प्रकार महाभारत में लक्ष्मी का विवरण गर्वान्त’ एवं इच्छाधारिणी बताया गया है, जो कि अपनी इच्छा के अनुसार ही विचरण करती है, और जहां भी निवास करती है, पूर्ण गर्व के साथ निवास करती है, किसी के बन्धन में अथवा अंकुश में नहीं रह सकती है।
लक्ष्मी के स्वरूप में सामान्य रूप से लक्ष्मी को स्त्री रूप में चतुर्भुज अर्थात् चार हाथों से युक्त स्पष्ट किया गया है, उसके साथ ही वेशभूषा में लक्ष्मी में लाल वस्त्र जो कि स्वर्ण रेखा से युक्त है उन्हें धारण किये हुआ है, उसके एक हाथ से स्वर्ण मुद्राएँ नीचे गिरती हुई स्पष्ट की गई हुई ओर कमल का पुष्प धारण किये हुए है, तथा वह कमल के पुष्प पर जो कि पूर्ण रूप से विकसित है, उस पर कहीं बैठी मुद्रा में ओर कहीं खड़ी मुद्रा में दिखाई देती है। कमल के पुष्प को धारण करने और इसके आसन पर बैठने के कारण लक्ष्मी को “कमला’ कहा गया हे।
कमल पुष्प जिसे पूर्ण शुद्धता का स्वरूप कहा गया है। जो कि भगवान विष्णु का प्रतीक है अर्थात् जगत् के प्रतिपालन का स्वरूप हे। उस पर लक्ष्मी आधारित हे, इसके साथ ही लक्ष्मी के दोनों ओर दो हाथी अपनी सूंड उठाये हुए दिखाई देते हे, इसकी भी अत्यन्त गहरी व्याख्या हे।
लक्ष्मी के चार हाथ जो चारों दिशाओं में है, ब्रह्माण्ड की चारों दिशाओं को प्रगट करते हे, और यह स्पष्ट करते है कि लक्ष्मी चारों दिशाओं में तथा आकाश, पाताल में भी विद्यमान है, और सर्वत्र उसका पूर्ण महत्व हे।
लक्ष्मी के वस्त्रों में सोने के रंग जेसी किनारी स्पष्ट कि गई है, यह स्वयं रंग उन्नेत्ति का और प्रगति का परिचायक स्वरूप है, अतः इन दोनों रंगों के पीछे यही उद्देश्य है कि भगवती लक्ष्मी जगत् को प्रगति, उन्नत्ति और वैभव प्रदान करती है, और सदैव यही क्रिया करने के लिए लक्ष्मी सदैव तत्पर रहती है। लक्ष्मी के जिस हाथ में मुद्रा आभूषण दिखाये गये है वह हाथ नीचे की ओर है, अर्थात् लक्ष्मी सदैव प्रदान करने वाली ही देवी हे।
भोतिक संसार में लक्ष्मी की कामना-इच्छा और वरण करना अनिवार्य ही है, प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में लक्ष्मी प्राप्ति के लिए ही अग्रसर होता है, उसके साथ ही साधनात्मक रूप से लक्ष्मी की पूर्ण अनुकम्पा भी चाहिए जिससे उसका कार्य रूके नहीं वह जो भी कार्य करे उससे अर्थ प्राप्ति अवश्य हो।
सद्गुरुदेव ने एक नवीन परम्परा स्थापित की, दीपावली के शुभ अवसर पर शिष्यों को आवाहन किया कि जिस प्रकार दूर रहने वाला बालक दीपावली पर्व पर घर आने के लिए लालायित रहता हे परदेश में नोकरी व्यापार करने वाले की यह इच्छा रहती हे कि वह दीपावली उत्सव पर अपने घर अवश्य पहुचे।
सदगुरुदेव कहते हैं कि तुम शिष्य लोग अलग-अलग स्थानों पर नोकरी, व्यापार इत्यादि कर रहे हो। यह ठीक है लेकिन यह मत समझ लेना कि वो तुम्हारा घर है तुम्हारा घर तो गुरु गृह है और तुम सब मेरे बच्चे हो और दीपावली पर्व अपने बच्चों के परिवार के साथ सम्पन्न करके ही मुझे प्रसन्ननता होती है।
इस वर्ष 21, 22, 23 अक्टूबर को दीपावली पर्व पर आपको कैलाश सिद्धाश्रम में अवश्य ही आना हे। गुरु परिवार के आप सदस्य हें दीपावली पर्व केवल साधनात्मक शिविर अथवा उत्सव ही नहीं हे अपितु इन दोनों से ऊपर एक महान दिवस है। जब परिवार के सारे सदस्य एक साथ सद्गुरुदेव की जन्म भूमि पर बेठकर अपने भीतर आनन्द को तिरोहित करेगें। उस अवसर पर मनुष्य तो क्या देवगण और भगवान भी साक्षात् पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते ही है।
सर्वथा पहली बार सदगुरुदेव की जन्म-स्थली खंरटिया मठ के दर्शनों का लाभ सोभाग्यशाली शिष्यों को ही प्राप्त हो सकेगा। और इन दिवसों में प्रत्येक साधक साधिका अपने आप को नवीन उर्जा और चेतना से आपूरित कर सकेगें। इसी के साथ जीवन में निरन्तर निरोगता, लावण्यता ओज, तेज और लक्ष्मी के सभी स्वरूपों से जीवन को क्रियान्वित करने की क्रियायें सम्पन्न होगीं। जो अपने जीवन को स्वर्ण कान्ति युक्त ओर जीवन में श्रेष्ठमय स्थितियाँ। चाहते है, वे दीपावली महापर्व में अपना पंजीकरण अवश्य ही करायेगें जिससे कि सद्गुरुदेव अपने मानस पुत्र-पुत्रियों के जीवन में अक्षय स्वरूप लक्ष्मी को 108 स्वरूपों में पूर्णरूपेण स्थापित कर सकेंगे। आप विष्णु और लक्ष्मी स्वरूप में आयेगें तो प्रसन्नता प्राप्त हो सकेगीं।
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