शिष्य को चाहिये वह जब भी गुरू शब्द का उच्चारण करे तो पूर्ण श्रद्धा के साथ उच्चारण करे।
गुरू चरणों के अतिरिक्त शिष्य के लिये कोई तीर्थ नहीं होता, उसी भाव से वह गुरू चरणोदय को भी अमृत समझकर पान करता है।
गुरू शिष्य को अपने समान बनाने का प्रयास करते है और इसी कारण से उन्हें स्वयं सर्वप्रथम शिष्य के अनुरूप स्वरूप धारण करना पड़ता है, परन्तु यह शिष्य की अज्ञानता होती है, जो वह गुरू को सामान्य रूप में देखता है, उसके लिये ऐसा चिंतन दुर्भाग्यपूर्ण होता है।
संयम, श्रद्धा, आत्मविश्वास, प्रेम, निष्ठा और समर्पण ये छः गुण जब स्थापित हो जाये तब ही जानिये कि आप सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ रहे है। कोई आपके सफलता के द्वारा खोल कर नहीं खड़ा है। आपको ये छः गुण अपने अंदर विकसित करने हैं।
सद्गुरूदेव ही आपके मित्र है, भ्राता है, माता-पिता है। उनमें ही एकाकार होने की क्रिया शिष्य को करनी चाहिये।
जो शिष्य गुरू स्थान के निकट रहता हो, उसे प्रतिदिन एक बार जाकर गुरूदेव को प्रणाम करना चाहिये, परन्तु जो शिष्य बहुत दूर रहते है उन्हें वर्ष में तीन बार, या कम से कम एक बार तो आकर गुरूदेव को अवश्य प्रणाम करना चाहिये।
बीज को बोध नहीं होता अपनी पूर्णता का, और इसी तरह शिष्य को भी अपनी पूर्णता का भाव नहीं होता, गुरू का कार्य उसे उसकी पूर्णता का बोध कराना होता है।
कुछ शिष्य पर गुरू कृपा का ऋण भी रहेगा और शिष्य को ध्यान रखना चाहिये कि जब तक शिष्य में प्राण है, गुरू उसको आदेश दे सकते है, और उसे पालन करना ही है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,