बच्चे, बूढे, बीमार, गर्भवती माताओं को अधिक पोषक आहार इस लिये दिया जाता है क्योंकि शरीर में मौजूद अभावों को पूर्ण किया जा सके, वह जल्द-से-जल्द स्वस्थ व हष्ट-पुष्ट हो सके।
जैसा आहार खाओगे वैसा ही काया शरीर प्राप्त होगा।
यही सिद्धांत हमारे मन-मस्तिष्क पर भी लागू होता है, आप जिस प्रकार का ज्ञान अर्जन करेंगे वही भाव-चिन्तन आपमें अभिव्यक्त होंगे, जो आहार आप अपने मस्तिष्क को देंगे वह वही कार्य करने में वह निपुण होगा, एक Doctor, Engineer, Scienctist, लेखक अपने मन-मस्तिष्क को सालो-साल सिखाते हैं, सोचने समझने पर केन्द्रित करते है, किताबों के माध्यम से, लेख के माध्यम से अपने मस्तिष्क को निरन्तर वह आहार प्रदान करते है जो उन्हें अपने लक्ष्य को पूर्णता से प्राप्त करने में सहायक होता है।
शरीर के लिये भोजन आपको ऊर्जावान बनायेगा, ज्ञान लेखक के माध्यम से, ग्रंथ, वेद का पठन करने से अनुसरण करने से आपको चेतनावान बनायेगा, वह चेतना आपको अपने जीवन के हर पल आपके साथ रहेगी।
मन मस्तिष्क के कुपोषण या गलत आहार से आपके सोचने समझने की शक्ति क्षीण होगी, कुपोषित-कुआहार से आपके विचार नकारात्मक हो जाते हैं। जिस प्रकार एक Doctor हमारी जाँच कर कद-काठी देख हमें क्या खाना है उसके बारे में बतलाते हैं, उसी भांति गुरू मात्र अपने शिष्य को देखने भर से उसके मन-मस्तिष्क के विचारों के अभावों को जान लेते हैं। वह उसे उपयुक्त मंत्र जप, साधना या दीक्षा का निर्देश देते हैं।
मन तो चंचल है, हर प्रकार के उटपटांग विचार, चिन्तायें हमेशा मन में चलती रहती है, मन के उन विचारों को संयम में रखने व सकारात्मक विचार रखने के लिये भक्ति-मंत्र जप-साधना ही केवल एक मात्र मार्ग है, इसीलिये ऋषि-मुनि, गुरू जन, कथा वाचक सदैव प्रफुल्लित रहते हैं।
जीवन में उसी चेतना व ओज की प्राप्ति के लिये आप सभी 12-13-14 मार्च को कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर आकर उस चेतना को आत्मसात करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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